________________
आशीर्वाद देते हुए पूज्यश्री, वि.सं. २०४७, वढवाण (गुजरात)
५-१०-१९९९, मंगळवार __ आ. व. ११ ( दोपहर)
. उपधान से नवकार आदि सूत्रों का वास्तविक अधिकार प्राप्त होता है ।
मेरी निश्रा में ही करो, ऐसा मैं नही कहता, परन्तु निश्चय करो कि उपधान कहीं भी करना ही है ।
महानिशीथ सूत्र में इस सम्बन्ध में विधान है।
महानिशीथ जैसे महान् एवं पवित्र सूत्र में पंचमंगल महाश्रुतस्कन्धरूप नवकार के लिए उपधान वहन करने को कहा है।
महानिशीथ की एक ही 'प्रति' हाथ में आई थी, वह भी दीमक द्वारा खाई हुई थी। पू. हरिभद्रसूरिजी ने उसका उद्धार किया है। - केवल तपागच्छीय परम्परा ही महानिशीथ सूत्र को मानती है।
. कर्मों का क्षय तप से ही होता है। धीरे-धीरे तप का अभ्यास करें । पच्चक्खाण पर विश्वास बढाओ । पच्चक्खाण लेते ही मनःस्थिति कैसी बदल जाती है ? क्या आप जानते हैं ?
उपवास का पच्चक्खाण लिया हो उस दिन भूख ही नहीं लगती । पच्चक्खाण का यह प्रभाव है । बाह्य तप अभ्यन्तर तप का हेतु है ।
** कहे कलापूर्णसूरि - १)
३५२ ******************************
क