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जीवों पर दया, मैत्री, दान एवं मधुर वाणी - इनके समान तीनों लोक में अन्य एक भी वशीकरण नहीं है ।
यदीच्छसि वशीकर्तुं जगदेकेन कर्मणा । पराऽपवाद-सस्येभ्यो, गां चरन्ती निवारय ॥
'एक ही कार्य से यदि तू जगत् को वश करना चाहता हे तो परनिन्दारूपी घास चरती अपनी वाणीरूपी गाय को रोक ।'
वाणी से परोपकार होता है । परोपकार से गुरु का मिलाप होता है । - दक्षिण में क्यों लोकप्रियता मिली ?
हमें हमारे गुरुदेवों ने सिखाया है कि कभी मांगना नहीं । सिर्फ धर्म-कार्य में सहायता करना । कोई प्रोजेक्ट रखने नहीं । आज लोक मांगनेवालों से थक गये हैं । जब मांगना बन्ध करते हैं तब लोगों में प्रिय बनते हैं।
दक्षिण में प्रतिष्ठाओं की हारमालाओं से सब से बड़ा लाभ यह हुआ कि स्थानकवासियों ने भी मन्दिरो में चढावे लिये । वे लोग मूर्तियों के प्रति श्रद्धालु बने । मद्रास के नूतन मन्दिर की प्रतिष्ठा के समय तीन लाख तमिल लोगों ने भी भगवान के दर्शन किये थे ।
- यहां का स्वाद (जाप, प्रवचन आदि का) जिसने चखा वह जीवन में इस स्वाद को कभी नही भूल सकेगा, यदि उसने सचमुच स्वाद चखा होगा ।
'कडं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक मळ्यु. उपरतुं यइटल जोईने ज गमी जाय. अंदर दररोजना व्याख्यान, तिथि, तारीख अने वार साथेनुं प्रवचन, जीवन आवरी ले तेवू साहित्य छे.
- पंन्यास रविरत्नविजय
गोपीपुरा, सुरत.
कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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