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. भावावेश में एवं ध्यानावेशमें स्थल + काल भूल जाते है । आपको यहां कोई आपका गांव, तारीख आदि याद आते हैं ?
__ भावावेश एवं ध्यानावेश भक्ति से प्राप्त होता है ।
_ 'भगवन् ! आप देने में ढील क्यों करते हैं ? मैं उतावला हूं, आप धीमे हैं । भक्त कहता है कि ऐसे कैसे चलेगा ?
. भगवान के आगम पढें और आपका भगवान के प्रति प्रेम जागृत न हो, ऐसा असम्भव है । अगर भगवान के प्रति प्रेम न जगा तो आपने आगम पढा ही नहीं, ऐसा समझ लो ।
. गुरु में भगवद्बुद्धि जागृत हो उसे भगवान शीघ्र मिलते हैं । पंचसूत्र (४)में लिखा है -
'गुरुबहुमाणो मोक्खो' । 'गुरुभक्तिप्रभावेन तीर्थंकृद्दर्शनं मतम्' हरिभद्रसूरिजी ने योगदृष्टि समुच्चय में इस प्रकार कहा है ।
. सुनते ही याद क्यों न रहे ? रस एवं एकाग्रतापूर्वक सुनो तो याद रहे । अमेरिका या युरोप में फोन लगाया हो और कोई महत्त्वपूर्ण समाचार हो तो याद रहते है कि नहीं ? इतनी ही लगन से यहां सुनो तो ?
यक्षा, यक्षदत्ता आदि स्थूलिभद्र की सात बहनें क्रमशः एक, दो बार सुन कर याद रख लेती थीं । सातवीं बहन को सात बार सुनने पर याद रह जाता था । बड़ी बहन को एक बार सुनने पर याद रह जाता ।
सुनकर याद रखने की परम्परा भगवान महावीर के बाद वर्षों तक चलती रही । बुद्धि घट गई तब सब पुस्तकों में लिखा गया । पुस्तकों की वृद्धि बुद्धि की वृद्धि का चिन्ह नहीं है, परन्तु यही माने कि घटती रही बुद्धि का चिन्ह है ।
यहां आपको उस प्रकार याद रखना है ।
. जिसके प्रति आपको बहुमान हुआ, वह वस्तु आपकी हो गई।
गुरु के प्रति बहुमान है तो गुरु आपके । भगवान के प्रति बहुमान है तो भगवान आपके ।
चाहे भगवान या गुरु कितने ही दूर हों, परन्तु बहुमान | ३२८ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)