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समीप ले आता है। भगवान या गुरु चाहे जितने समीप हों, परन्तु बहुमान न हो तो , वे हमसे दूर ही है ।
• हमारे समय में दस आने प्रति किलोग्राम शुद्ध देशी घी मिलता था । आज डालडा घी या तेल भी उस भाव से नहीं मिलता । शुद्ध घी आयुष्य वृद्धि का कारण है । 'घृतमायुः' आयुर्वेद का प्रसिद्ध वचन है ।
घी ही आयुष्य है अर्थात् आयुष्य का कारण है। यहां कारण में कार्य का उपचार हुआ है । पंचसूत्र में कहा है कि गुरु के प्रति विनय (बहुमान) मोक्ष है ।
. चर्म-चक्षु उपर छत देखती है, अधिक-अधिक तो सूर्य, चन्द्रमा और तारे देखती है, परन्तु श्रुत-चक्षु, श्रद्धा-चक्षु तो उपर सिद्धशिला देखती हैं ।।
दूरस्थोऽपि समीपस्थो, यो यस्य हृदये स्थितः । समीपस्थोऽपि दूरस्थो, यो न यस्य हृदि स्थितः ॥
गोशाला भगवान महावीर के निकट था । वह स्वयं आकर शिष्य के रूपमें रहा था, फिर भी दूर ही था, क्योंकि बहुमान नहीं था । सुलसा, चन्दना आदि दूर थीं । निर्वाण के समय गौतम स्वामी दूर थे, फिर भी निकट कहे जाते हैं, क्योंकि हृदय में बहुमान था ।
. फोन की घंटी बार-बार बजती है। अतः आपको फोन उठाना ही पड़ता है । 'नमो अरिहंताणं... नमो अरिहंताणं...' रूपी घंटी निरन्तर बजाते ही रहें । भगवान हमारा फोन कभी न कभी तो उठायेंगे ही । हां, उसके लिए अपार धैर्य की आवश्यकता है।
(सब को नौ लाख जाप के लिए नित्य पांच पक्की नवकारवाली गिनने की प्रतिज्ञा कराई गई ।)
आपके यहां दो-चार बार घंटी बजने पर आप फोन उठाते हैं । जब नौ लाख बार आपकी घंटी भगवान के दरबार में बजेगी तो क्या भगवान आपका फोन नहीं उठायेंगे ?
प्रश्न : इस बीच आयुष्य पूर्ण हो गया तो ?
उत्तर : नौ लाख की आपकी प्रतिज्ञा नहीं टूटेगी । आगामी भव में आपको ऐसा जन्म मिलेगा जहां जन्म लेने के साथ ही नवकार मिलेगा । नवकार भवान्तर में भी साथ चलेगा । कहे कलापूर्णसूरि - १ ******
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