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________________ दिखता है तो निश्चय ही हम दुष्ट है । यदि जगत अव्यवस्थित दिखता हो तो निश्चय ही हम अव्यवस्थित है । यदि जगत व्यवस्थित दिखता है तो निश्चय ही हम व्यवस्थित है । यदि जगत गुणवान दिखता है तो निश्चय ही हम गुणवान है । दृष्टि जैसी सृष्टि वैसे ही नहीं कहा गया । . भगवान को भूल जाना यही आपत्ति, भगवान को याद रखना यही सम्पत्ति है। ___ यदि यह दृष्टि खुल जाये तो दुःख भी सुख रूप लगेगा, सुख भी दुःख लगेगा । तत्त्व प्राप्ति का यही चिन्ह है । . भुज में गाय के कारण टक्कर लगी, फ्रेक्चर हुआ । मुझे खड़ा किया गया, परन्तु मैं चल नहीं सकता था । एक पांव बराबर चलने के लिए तैयार, परन्तु दूसरा पैर बराबर नहीं था । दूसरे पैर की सहायता के बिना एक पैर क्या कर सकता था ? मुक्ति-मार्ग में भी अकेले निश्चय से या अकेले व्यवहार से, अकेली क्रिया से या अकेले ज्ञान से नहीं चल सकता; दोनों चाहिये । __ ज्ञान आंख हैं तो क्रिया पैर हैं। पैरों के बिना आंखें क्या चल सकती हैं ? आंखों के बिना अकेले पैर क्या चल सकते हैं ? आंखों के बिना पैर अन्धे हैं और पैरों के बिना आंखें पंगु हैं । पक्षी को उडनेके लिए पंख चाहिये, आंखें भी चाहिये । आंखें ज्ञान है, पंख क्रिया है । . शोभा नराणां प्रियसत्यवाणी । (वर्णमाता) वाण्याश्च शोभा गुरुदेवभक्तिः । (नवकार माता) नवकार । भक्त्याश्च शोभा स्वपरात्म-बोधः । (अष्ट प्रवचन माता) करेमि भंते बोधस्य शोभा समता च शान्तिः । (त्रिपदी माता) लोगस्स पू. पं. भद्रंकरविजयजी ने यह श्लोक हाथ से लिख कर दिया था । इस श्लोक पर मैंने १५-२० दिन तक व्याख्यान दिये थे, जो अनेक व्यक्तियों को याद होगा । इसमें चार माता, नवपद आदि सब आ जाता है । यह श्लोक कण्ठस्थ हो गया ? हां, कण्ठस्थ करना है । मैं समझता हूं कि आपको कण्ठस्थ करना अच्छा नहीं लगता । ३२० ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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