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________________ वलवाण (गुजरात) उपाश्रय में पूज्यश्री,वि.सं.२०४ १-१०-१९९९, शुक्रवार आ. व. ७ (प्रातः) अनन्त जन्मों के सामने यह एक जन्म का संग्राम है । पाप जन्म-जन्म के हैं । उन सबका इस एक ही जन्म में क्षय करना है । कैसे क्षय हो सकेगा ? अत्यन्त कठिन है, यह न मानें । अनन्त-अनन्त पापों का ढेर एक ही जन्म में कैसे विलीन होगा? यह सोचकर घबराना मत । अन्धकार चाहे जितना पुराना हो अथवा चाहे जितना बड़ा हो, उसे नष्ट करने के लिए प्रकाश की एक किरण पर्याप्त है। जैसे प्रकाश आता है और अन्धकार विलीन होता है, उस प्रकार धर्म के आते ही अधर्म विलीन हो जाता है। अधर्म-पाप अन्धकार है तो धर्म प्रकाश है । अन्धकार को नष्ट करने में प्रकाश को कोई वर्षों नहीं लगते । यह तो एक क्षण का ही काम है। केवलज्ञान प्राप्त करने में कोई अधिक समय नहीं लगता, सिर्फ अन्तर्मुहूर्त का ही काम है । क्षपक-श्रेणि के उस अन्तर्मुहूर्त में अनन्त पाप कर्म भस्म हो जाते हैं। • वि.संवत् २०३२ में लुणावा में 'ध्यान-विचार' लिखने का अवसर आया । कलम हाथ में ली, परन्तु लिखना क्या ? कहे -१******************************३१५
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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