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- जल में लोहा, लकड़ा एवं कागज डालो । लोहा डूब जायेगा, लकड़ा और कागज तैरेगा, उसमें भी लकड़ा तो स्वयं भी तैरता है और दूसरों को भी तारता है । कागज स्वयं तो तैरता है परन्तु वह दूसरों को नहीं तार सकता । लोहा स्वयं भी डूबता है और दूसरों को भी डुबोता है ।
हम किसके समान है ? आश्रितों को तारने वाले हैं कि ड्रबोने वाले हैं ?
. समता बार-बार याद आये अतः साधु दिन में नौ बार 'करेमि भंते' बोलते है ।
पांच महाव्रतों से प्राणातिपात आदि पांचो अव्रतों से विरमण हुआ । सामायिक के पाठ से क्रोध आदि पापों से विरमण हुआ ।
मुख्य तो सामायिक का ही पाठ है । उस प्रतिज्ञा में समस्त प्रतिज्ञाएं आ ही गई, परन्तु बड़ी दीक्षा के समय विशेष महाव्रत इसलिए भी उच्चारित किया जाता है उतने समय के दरमियान शिष्य की बराबर परीक्षा हो सके । यदि कुछ ऐसा प्रतीत हो तो उसे रवाना भी कर दिया जा सकता है ।
पू. कनकसूरिजी ने एक व्यक्ति को दीक्षा दी, फिर ध्यान आया कि इसमें मक्खियों को मारने की ऐसी आदत है जो जा नहीं सकती । पू. बापजी महाराज को पुछवाया, इसका क्या करें ? पू. बापजी महाराज ने लिखा, 'रवाना करें ।' फिर उसे उत्प्रव्रजित किया गया ।
. ग्यारहवे गुणस्थानक में चढे हुए, चौदह पूर्वी भी अनन्ता निगोद में गये हैं, ऐसा हमें इसलिए कहा जाता है कि हमारी संयम में सावधानी बढे । प्रमाद बढाने के लिए उसका उपयोग नहीं करना
'उनके जैसे महापुरुष भी निगोद में जाते हैं तो हमारी साधना की क्या विसात है ?, छोड़ो साधना, करो जल्सा ।'..
ऐसा विपरीत सोचने के लिए यह नहीं कहा गया । ..
. मेरा आत्मा भारीकर्मी है कि लघुकर्मी ? इसका अनुभव हमें कैसे होगा ? धर्म करते समय आनन्द होना चाहिये । यदि आनन्द आये तो समझें कि 'मैं लघुकर्मी' हूं । यदि परेशानी (३१० ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १