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वडवाण (गुजरात) में पूज्यश्री का प्रवेश, वि.सं. २०४७
२८-९-१९९९, मंगलवार
आ. व. ३ + ४
. 'समणो इव सावओ हवइ जम्हा ।' ।
गृहस्थ जीवन में रह कर भी ऐसी साधना की जा सकती है ताकि ज्ञानियों को भी कहना पड़े कि आप साधु जैसे बन गये ।
आप उदायी राजा, कामदेव, आनन्द आदि के दृष्टान्त पढें, उपासकदशा पढे । भगवान के दस श्रावक कैसे महान् थे? भगवान महावीर ने भी कहा था - 'आज रात्रि में आनन्द श्रावक ने उत्कृष्ट परिषह सहन किये ।।
'जास पसंसइ भयवं दढव्वयत्तं महावीरो ।'
इस प्रकार ही श्रावकत्व की करनी से साधु धर्म की पात्रता आती है । उस प्रकार प्राप्त चारित्र सफल होता है।
प्रश्न : चारित्र के परिणाम हो गये हों तो विधि की क्या जरूरत है ? न आये हों तो भी क्या जरूरत ? दोनों प्रकार से निरर्थक हैं ।
हरिभद्रसूरिजी कहते हैं - हमारी यह विधि ऐसी है कि चारित्र के परिणाम नहीं जगे हों तो जगें । जगे हुए हों तो निर्मल बन कर स्थायी रहें । तीसरे वैद्य की तरह ये सब प्रकार से सुखकर हैं ।
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****************************** कहे