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इणमें नहीं । एहि ज परम निधान ।'
हमारे व्यवहार प्रधान ग्रन्थ यह कहते हैं ।
प्रभु को अलग रखकर आप आत्मा प्राप्त करना चाहो तो यह कभी सम्भव नहीं है। भगवान को दूर करके केवल आत्मा रखने गये तो केवल अहंकार ही रहेगा और आप उसे 'आत्मा' मानने की भूल करते रहेंगे ।
परन्तु जो प्रभु को पकड़ कर रखेंगे उन्हें आत्म-दर्शन होंगे ही । प्रभु स्वयं ही एक दिन उसे कहेंगे - 'तू और मैं कोई अलग नहीं है । हम दोनों एक ही हैं ।'
'कहे कलापूर्णसूरि', 'कडं कलापूर्णसूरिए' नामना पुस्तक मळ्यां छे. लखाण घणुं ज सारुं छे. खूब ज उपयोगी पुस्तको छे. श्रुतज्ञाननी आराधनामां आपनी अप्रमत्तता अनुमोदनीय छे. आपे एमां खूब ज प्रयास करेल छे. शासन-देव आपने आवा कार्योमां खूब खूब शक्ति आपे. वांचवामां सर्व समजी शके तेवा सरळ तत्त्वदर्शी अने गमे तेवा आपना पुस्तको छे.
- मुनि हितवर्धनसागर मोटा कांडागरा, कच्छ,
कहे
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