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नींद में साधु का गुणस्थानक रहता है कि चला जाता है ?
उत्तर : नींद में साधु का गुणस्थानक रहता है, जाता नहीं । नींद करते समय भी आत्म-जागृति बनी रहती है । अतः साधु खाते है, फिर भी उपवासी कहलाते है । जब कि खाऊधरा व्यक्ति उपवास करता है तब भी मन खाने में ही रहता है ।
इसी अर्थ में भरत चक्रवर्ती को वैरागी कहा है । 'मन ही में वैरागी भरतजी...'
तीर्थंकर गृहस्थ जीवन में विवाह या युद्ध में भी कर्म नहीं बांधते, वरन क्षय करते हैं । गृहस्थ जीवन में कर्म कटते हैं फिर भी शान्तिनाथ आदि ने चारित्र पसन्द किया, षट्खण्ड की ऋद्धि का त्याग करके सर्वविरति का स्वीकार किया ।
राजमार्ग यही है । यही राजमार्ग जगत् के जीवों को बताना
प्रश्न : उपवास में चोलपट्टा का पडिलेहन बाद में किया जाता है।
यदि वापरा (भोजन किया) हो तो चोलपट्टे का पडिलेहन पहले करना पड़ता है - इसका क्या कारण है ? ।
उत्तर : वापरते समय सन्निधि हो चुकी हो तो धो सकें इस लिए।
. आज या कल जब भी मोक्ष चाहिए तब समता का आदर करना पड़ेगा । यदि ऐसा ही हो तो समता की साधना आज से ही शुरू क्यों न करें ? यदि समता लाना चाहो तो ममता को बिदा करना पड़ेगा । कोई भी गुण चाहिये तो उससे विरुद्ध दुर्गुण को मिटाना ही पड़ेगा । दुर्गुण निकाल दो तो सद्गुण उपस्थित ही है । कूडा-कर्कट निकालते ही कमरे में स्वच्छता स्वतः ही आ जायेगी ।
. संयम जीवन अपनाने के बाद यदि अहंकार एवं ममकार नष्ट न हो तो साधना किस प्रकार हो सकेगी ? साधना के विघातक परिबल ये ही हैं । यही ग्रन्थि है, यही गांठ है । राग-द्वेष की तीव्र गांठ । ममकार राग एवं अहंकार द्वेष का प्रतीक है। इस गांठ का छेद किये बिना सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हो सकता ।
*** कहे कलापूर्णसूरि - १
३०४ ****************************** कहे