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प्रार्थना के बिना ही केवल करुणा से तीर्थ स्थापना की है।
सूर्य किसकी प्रार्थना से उगता है ? पुष्प किसकी प्रार्थना से खिलता है ? जल किसकी प्रार्थना से प्यास बुझाता है ? हवा किसकी प्रार्थना से चलती है ? बादल किसकी प्रार्थना से बरसते है ? कोयल किसकी प्रार्थना से टहूकती है ? यह उनका स्वभाव है।
भगवान का भी परोपकार करने का स्वभाव है । चाहे कोई प्रार्थना करे या न करे । चण्डकौशिक ने कभी कहा नहीं था कि आप मेरा हृदय परिवर्तन करना ।
अनेक व्यक्ति पूछते हैं - 'क्या चण्डकौशिक के साथ भगवान का कोई पूर्व भव का सम्बन्ध था ?
क्या चन्दनबाला केसाथ उनका पूर्व भव का कोई सम्बन्ध था?
सम्बन्ध हो या न हो, हेमचन्द्रसूरि ने 'वीतराग स्तोत्र' में कहा है - 'असम्बन्ध बान्धवः' भगवान सम्बन्ध बिना के स्वजन हैं । इसके द्वारा भगवान हमें भी सूचित करते हैं कि 'परोपकार करने के लिए आप कभी सम्बन्ध न देखें ।'
अन्ततोगत्वा परोपकार स्वोपकार ही है । जीवत्व का तो सब के साथ सम्बन्ध है ही ।
साधना अने प्रार्थना हुं कोईपण वस्तुने चाहुं तेना करतां आत्माने चैतन्यमात्रने वधु चाहूं. एवं माझं मन बनो, ए श्रेष्ठ साधना अने प्रार्थना छे.
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कहे