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को सम्यग्मार्ग की ओर अग्रसर करे, तदनुसार वह व्यवहार करे तो उसका पुन्य भी गुरु को प्राप्त होता है ।
ॐ 'एकान्त बाल मिथ्यात्वी, बालपण्डित देशविरत श्रावक, एकान्त पण्डित साधु' भगवती सूत्र की यह व्याख्या आज पढ़ने में आई है । इस व्याख्या के अनुसार हम बाल कि पण्डित ? T.V. के पास वृद्ध एवं वृद्धाएं भी बैठती हैं । उन्हें हम बाल कहेंगे कि पण्डित ? एकान्त पण्डित के लिए दो गतियाँ ही बताई गई है, अन्तक्रिया (निर्वाण) अथवा कल्पोपपत्तिका (वैमानिक देवलोक) । कर्मसत्ता उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती ।
- भगवान 'अनाहूत-सहाय' कैसे ? चंडकौशिक ने भगवान को निमन्त्रण भेजा था ? कि हे भगवान् ! आप पधारो, मैं आपका सामैया करूंगा, आपकी भक्ति करूंगा । जो आप फरमायेंगे वह मैं करूंगा, बस पधारो ।' निमन्त्रण नहीं दिया था । भगवान तो बिना बुलाये गये थे । इतने महान् प्रभु क्या बिना बुलाये जाते हैं ? हां, बिना बुलाये जाते हैं, इसीलिए वे महान् हैं । उन्होंने सम्पूर्ण जीवराशि को अपना परिवार माना है ।
क्या स्वजनों से निमन्त्रण की अपेक्षा करें ? जब कोई स्वजन अस्वस्थ होने का समाचार मालूम हो तो क्या आप घर में बैठे रहेंगे कि दौड़ कर वहां पहचेंगे ?
चंडकौशिक भयंकर रूप से अस्वस्थ था, वह भाव रोगी था । उसे भगवान की कोई पड़ी नहीं थी । वह तो अहंकार से सब को भस्म कर डालता था । इसीलिए भगवान बिना सम्बन्ध के रिश्तेदार हैं, अन्यथा चंडकौशिक के साथ भगवान को क्या लेना-देना था ?
बुलाये और भगवान न आयें, यह तो हो भी कैसे ? भगवान तो बिना बुलाये आने वाले हैं । आप शायद भगवान को प्रार्थना न भी करें तो भी वे आपका हित अवश्य करेंगे ।
किसकी प्रार्थना से भगवान ने तीर्थ की स्थापना की ? किसकी प्रार्थना से दीक्षा ग्रहण की ? लोकान्तिक देवों ने उसके लिए प्रार्थना की यह तो उनका कल्प है। भगवान को उसकी अपेक्षा नहीं थी । वे स्वयं- संबुद्ध हैं । भगवान ने किसी की कहे कलापूर्णसूरि - १ ********
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