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________________ होती है। अन्य मनुष्य जैन धर्म की निन्दा करेंगे । यह भारी पाप है । कहीं भी स्थान नहीं हो तो वनस्पति घास आदि उगी हुई हो वहां भी (धर्मास्तिकाय की कल्पना करके) बैठा जा सकता है, परन्तु सड़क पर नहीं बैठा जाता । स्थंडिल विधि : सूर्य, गांव और वायु को पीठ देकर नहीं बैठा जा सकता । दिन में उत्तराभिमुख, रात्रि में दक्षिणाभिमुख बैठ सकते है । लौकिक विधि का पालन करना आवश्यक है। ताकि कोई निन्दा न करे । यदि कोई बोल जाये कि 'ये लोग कैसे है ? सूर्य नारायण को पीठ देकर बैठे हैं ।' तो उचित नहीं लगेगा । . एक साधु की गोचरी चर्या देखकर इलाचीकुमार केवली बन गये थे, यह हम सभी जानते है । नटड़ी के ध्यान में से प्रभु के ध्यान में ले जाने वाले मुनि थे । एक मुनि कितना कार्य करता है ? . एक कनकसूरिजी महाराज ने कितना कार्य किया ? हमें उन्होंने आकर्षित किये थे । उनका नाम सुन कर हम आये थे । इसके लिए हमने किसी ज्योतिषी को नहीं पूछा था । राजनांदगांव से पालीताना आये तब तक भी निश्चित नहीं था । वे पण्डित अथवा वक्ता भले ही नही थे, परन्तु आचार-सम्पन्न थे । इसीलिए लब्धिसूरिजी जैसों ने उनकी प्रशंसा की थी। प्रथम दर्शन में ही मन अभिभूत हो गया । वि.संवत् २००९ में विद्याशाला में उनके प्रथम दर्शन हुए थे । मधुर वाणी का प्रभाव नहीं पड़ता, दम्भी वर्तन का प्रभाव नहीं पड़ता । आपके आचार (आचरण) का प्रभाव पड़ेगा। . वचनगुप्ति और भाषा समिति इन दोनों के सम्यक् पालन से आप इसी जीवन में वचनसिद्ध पुरुष बन सकते हैं । असत्य बोलना नहीं, किसी की निन्दा करनी + सुननी नहीं । इतना निश्चय करें। फिर देखें कि वचन-सिद्धि दौड़ती-दौड़ती आती है कि नहीं ? . भगवान एवं गुरु को प्रसन्न करने हों तो उनकी आज्ञा का पालन करो । गुरु-कृपा स्वयं आपके पास आयेगी । * शिष्य को गुरु समझाये नहीं और शिष्य जो कुछ करे उसका पाप गुरु को लगेगा । यदि गुरु सच्ची समझ देकर शिष्य | २९६ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १) का
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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