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भक्ति चित्त को विकृति-रहित बनाने के लिए विकृति (विगई) का त्याग आवश्यक है, उसी तरह से भगवान की भक्ति का आदर आवश्यक है।
. नवकार का 'न' भी अनन्त पुन्यराशि का उदय होने पर प्राप्त होता है । यहां तो हमें सम्पूर्ण नवकार प्राप्त हुआ है, फिर पुन्योदय का क्या पूछना ?
. एक ओर जगत् की समस्त सम्पत्ति रखी जाय और दूसरी ओर मात्र प्रभु का नाम रखा जाये तो दोनों में से कौन बढ कर होगा ?
जीवन भर धन, धन, धन करते-करते मर चुके मम्मण को पूछ लो । धन की उपेक्षा करके सामायिक करने वाले पुणिया-श्रावक को पूछ लो ।
नवकार मंत्र में प्रभु के सामान्य नाम हैं, जिसमें समस्त अरिहंत, सिद्ध आदि पंच परमेष्ठी आ जाते हैं। नवकार गिनना अर्थात् भगवान के चरणों में शीश धर देना ।
जो मनुष्य सर्व विरति तक पहुंचना चाहते हों और पहुंच नहीं सकते हों वे नवकार का, प्रभु-नाम का शरण स्वीकार कर के देखे । प्रभु-नाम से अथवा प्रभु-मूर्ति से किसी का कल्याण हुआ है ? ऐसा अगर आप पूछते हैं तो मैं मेरा नाम सर्व प्रथम लिखवाता हूं। मुझे यहां तक पहुंचानेवाले प्रभुनाम एवं प्रभुमूर्ति ही है । ___मुंबई आदि से आप इतनी बड़ी संख्या में यहां क्यों आते हैं ? मैं तो मानता हूं कि प्रभु आपको भेज रहे हैं । जिन्हें प्रभु भेजते हों, उनका अपमान कैसे हो सकता है ?
मुंबई से आप यहां आये तो अपनी पेढी बन्द करके आये ? आपके नाम से वहां पेढी चलती है न ? भगवान मोक्ष में गये परन्तु उनकी पेढी यहां चलती है । उनके नाम से चलती है । आपके नाम से जब पेढी चलती है तो क्या भगवान के नाम से नहीं चलेगी ?
(२८८ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)