________________
प्रत्यक्ष देख रहे हैं, परन्तु आज तो हम भिखारी हैं, पैसे होते हुए भी कंगाल है। हाथ में कुछ नहीं है ।
मुंबई के कतिपय बिल्डरों के पैसे भूमि में रुके पड़े हों, भूमि के भाव गिर रहे हों, वैसी अपनी स्थिति है । पैसे हमारे होते हुए भी हमारे पास नहीं है ।
• जिसे सामान्य मनुष्य स्वर्ण - चांदी मानते है, जिसके पीछे भागने में जीवन व्यतीत करते हैं, ज्ञानियों की दृष्टिमें केवल पीली एवं श्वेत मिट्टी है।
"गिरिमृत्स्नां धनं पश्यन्, धावतीन्द्रियमोहितः । अनादिनिधनं ज्ञानं धनं पा न पश्यति ॥
- ज्ञानसार इन्द्रियजयाष्टक • आपके रूपये कहीं जमा हों और आप उस बात से अनभिज्ञ हो तो स्वाभाविक है कि अज्ञान के कारण आप मांगने नहीं जाये, धन के लिए यत्र-तत्र भटकते रहें ।
हमारी दशा आज ऐसी हुई है । हमारा आत्म-ऐश्वर्य कर्म सत्ता ने दबा दिया है । जिससे हम अनभिज्ञ है ।
- 'भण्या पण गण्या नहीं' यह गुजराती कहावत पुनरावर्तन का महत्त्व भी दिखाती है । सिर्फ पढना पर्याप्त नहीं है उसे गिनना आवश्यक है। गिनना अर्थात् पुनः पुनः आवर्तन करना, दूसरों को देना । जो दूसरों को देते हैं वह अपना है, शेष सब पराया है । दूसरों को दिया हुआ ज्ञान ही टिकता है, यह मेरा स्वयं का अनुभव है।
पढने के साथ गिनना अर्थात् जीवनमें उतारना । पढने के बाद वह यदि जीवन में न उतरे तो उसका अर्थ क्या ?
. बंध की अपेक्षा अनुबंध महत्त्वपूर्ण है । अनुबन्ध अर्थात् लक्ष्य, उद्देश्य, झुकाव, भीतर का हेतु । जिस प्रकार 'वांकी'में आनेवाला व्यक्ति जिस खाते में धन दे, उसी खाते में जमा होता हैं, उसी प्रकार हम जिस आशय से कार्य करें उसी स्थान पर जमा होता हैं ।
. मन को विकृत बनाती है वह विकृति-विगई है। विगति (विगई) से बचना हो तो विगई से बचना चाहिये । विकृति की प्रकृति ही मोह उत्पन्न करने वाली है । विकृति वापरने वाला साधक प्रायः मोह पर विजयी नहीं बन सकता ।
-१****************************** २८७