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नयम देते हुए पूज्यश्री, वढवाण, वि.सं. २०४७
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२३-९-१९९९, गुरुवार
भा. सु. १३
• पुष्करावर्त की धारा इतनी प्रबल होती है कि उसका जल भूमि में अत्यन्त गहरा जाता है, फिर वर्षों तक वरसात न हो तो भी पाक होता रहता है ।
भगवान की वाणी भी पुष्करावर्त मेघतुल्य है, जो इक्कीस हजार वर्षों तक काम करेगी, सर्वविरति की उपज होती ही रहेगी ।
- जितनी शक्तियां प्रकट रूप से केवलज्ञानी में हैं, वे समस्त शक्तियां समस्त जीवों में प्रच्छन्न रूपसे विद्यमान हैं ही ।
हमारा भावी स्वरूप अब भी केवलज्ञानियों को प्रकट है - एक की धनराशि उधार है, बैंक में जमा है, दूसरे की धनराशि नगद है ।
जीव एवं शिवमें यही अन्तर है । शिव का ऐश्वर्य नगद है, हमारा उधार है । हमारा ऐश्वर्य किसीने (कर्मसत्ता ने) दबा दिया है। हम उनसे मांग सकते नहीं है। हम मालिक हैं, मांगने की स्थिति में भी हैं । हमारा यह स्वामित्व जगाने के लिए ही ये धर्मशास्त्र आदि हैं ।
भविष्य में नगद होनेवाला अपना ऐश्वर्य आज भी केवलज्ञानी २८६ ****************************** कहे