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चार में से एक को छोड़कर शेष तीन निक्षेप तो आज भी कार्य करते हैं । इसीलिए चतुर्विध संघ मन्दिर मूर्ति आदि के बिना नहीं रह सकते । इसीलिए जैन लोग निवास के लिए पहले देखते है कि वहां जिनालय समीप है कि नहीं ।
यह बात बिल्डर भी समझ गये. हैं ।
प्रभु के समस्त गुण, समस्त शक्तियों, प्रभु के नाम में और मूर्ति में संग्रहीत है। यह देखने के लिए आपके पास आंख चाहिये ।
प्रभु ने गुण की प्रभावना करने के लिए ही जन्म लिया है। उनकी भावना यही है कि 'सब लोग मेरे जैसे ही बनें ।'
जगतसिंह सेठ का ऐसा नियम था कि मेरे नगर में जो आये उसे करोड़पति बनाना है । उन्होंने ३६० करोड़पति बनाये । फिर नियम बनाया कि नगर में आने वाले प्रत्येक साधर्मिक को प्रत्येक करोड़पति १००० (एक हजार) स्वर्ण मुद्राएं दें और प्रतिदिन साधर्मिक-भक्ति करे । अत्यन्त ही सरलता से आगन्तुक करोड़पति बन जाता । उदार सेठ जिस प्रकार समस्त आगन्तुकों को अपने समान करोड़पति बनाना चाहे, उस प्रकार भगवान जगत् के समस्त जीवों को अपने समान भगवान बनाना चाहते हैं ।
'कह्यं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक मळी गयेल छे. जो.... खूब ज चिंतनीय - मननीय सुवाक्योनो खजानो भरेल छे.
संकलनकर्ता आपने पण खूब खूब धन्यवाद... व्याख्यानमां ओछा लोको आवे, पण पुस्तक रुपे बहार पडेला विचारो हजारो लोको वांचे एटले हजारो लोको सुधी पूज्यश्रीनी प्रसादी पहोंचाडवानुं भगीरथ कार्य कर्या बदल खूब खूब अनुमोदना सह धन्यवाद...
- हेमन्तविजय
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