________________
२२-९-१९९९, बुधवार
भा. सु. १२
. आगमों के पठन में सरलता हो, उनके रहस्य समझ में आये, अतः हरिभद्रसूरिजी ने प्रकरण ग्रन्थों की रचना की है।
. गर्भ में ही पर्याप्ति पूरी होने के बाद हमारे भीतर संस्कार पड़ने लगते हैं। माता का मन, आसपास का वातावरण आदि सबका प्रभाव पड़ता है।
* डोक्टर भी दूर नहीं कर सकते वैसे कैन्सर आदि रोग भी प्रभु-नाम स्मरण से दूर हो जाते हैं । डाकटर भी अब यह मानने लग गये है। डॉक्टरों का कथन है कि रोगी यदि प्रसन्न न रहे, जीना नहीं चाहे, तो हमारी दवाईयां भी उसे बचा नहीं सकती।
चित्त की प्रसन्नता प्रभु के नाम का स्मरण करने से प्राप्त होती है। जो करोड़ों डोलर में भी कहीं नहीं मिल सकेगी।
साधु-साध्वी इतने रोग-ग्रस्त क्यों होते हैं ? मानसिक विचार तपासने जरूरी हैं । द्वेषयुक्त प्रकृति, मायावी स्वभाव इत्यादि भी रोग में कारण बनते हैं ।
कषाय भावरोग हैं ही । मन की प्रसन्नता लाखों रुपयों में भी नहीं मिलनेवाली दवाई
कहे
-१******************************२८१