________________
५. प्राण धारण ६. धर्म-चिन्तन
तप से सेवा नहीं हो सकती हो तो तप को गौण करें । सेवा मुख्य है । आप सेवा न करें और ग्लान की समाधि न रहे तो कितना दोष लगता है ? आंखों के आगे अंधेरा आये तो इर्यासमिति पूर्वक किस प्रकार चल सकेंगे ?
शरीर को नहीं, राग-द्वेष को पतले बनाने हैं । शास्त्रों के पदार्थों में गहराई तक जाना, धर्म-चिन्तन है ।
तेईस घण्टे अन्य प्रवृत्ति करें और एक घण्टा ध्यान धरें तो मन कैसे लगेगा ? दिन भर की समस्त प्रवृत्तियां उसके अनुरूप होनी चाहिये, तो ही ध्यान का सातत्य रहेगा । ध्यान के सातत्य से ही यह सिद्ध हो सकता है ।
भक्ति :
भगवान की भक्ति भवसागर से पार उतारती है। इसीलिए भगवान ने भवसागर में जहाज के समान धर्मतीर्थ की स्थापना की हैं ।
___ नाम आदि चार के द्वारा भगवान धर्म के लिए सतत सहायक बनते हैं ।
यजमान स्वयं ही अतिथि की देखभाल करे तो अतिथि को कितना आनन्द होता है ? भगवान धर्म-देशना देकर निवृत्त नहीं हो गये । सामने आकर खड़े है - 'आओ, मैं हाथ पकड़कर आपको ले जाता हूं । नाम आदि चारों भव-सागर में महासेतु तुल्य है।
. नर्मदा जैसी भयंकर नदी हो, फिर भी पुल के उपर चलते समय हमें भय नहीं लगता । भगवान ने भी भयंकर संसारसागर में पुल का निर्माण किया है। भक्ति के उस पुल पर चलनेवाले को भव का भय सताता नहीं है ।
. जाप बढने पर मन की निर्मलता बढती है। प्रभु-नामजप के समय हमारे तीनों योग एकाग्र बनते हैं । प्रभु के जापके द्वारा अनेक अजैन भी आत्म-शुद्धि करते हैं । उसके प्रभाव से ही आगामी जन्म में उन्हें शुद्ध धर्म की प्राप्ति होती है। गौतमस्वामी जैसेने भी पूर्वजन्म में या पूर्वावस्था में ऐसी ही कोई साधना की होगी न ?
-१****************************** २७९