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पट्टयर के साथ पूज्यश्री, सुरेन्द्रनगर, दि. २६-३-२०००
२१-९-१९९९, मंगलवार
भा. सु. ११
विधिपूर्वक पालन करो तो साधु धर्म शीघ्रता से और श्रावक धर्म धीरे-धीरे मोक्ष की ओर ले जाता है । श्रावक धर्म कीटिका गति से और साधु-घर्म विहंगम गति से चलता है ।
वृक्ष पर आम खाने के लिए चींटी भी चढती है, तोता भी चढता है, दोनों में कितना अन्तर है ?
भूख तीव्र हो तो जीव कीटिका-गति छोड़कर विहंगम-गति अपनाता है । आज पाप के कार्यों में विहंगम गति नहीं, परन्तु वायुयान की गति है, परन्तु धर्म कार्यों में चींटी जैसी गति है ।
. अतिचार अर्थात् चारित्र-जहाज में छिद्र । छिद्र ध्यान में आने के बाद उसे बन्द नहीं किया जाये तो जहाज डूब जायेगा । छिद्र बन्द करने के बजाय हम यदि बड़े-बड़े छेद करते रहेंगे (अतिचार करते रहेंगे) तो क्या होगा ?
. शरीर पर कोई फोड़ा अथवा घाव हो तो उस पर हम आवश्यकतानुसार मलम ही लगाते हैं, उस पर थथेरते नहीं हैं । उस तरह भोजन के समय साधु आवश्यकतानुसार आहार लेते है। स्वादिष्ट वस्तु देख कर वे अधिक नहीं लेंगे ।
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