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अभ्यास वाले चौदहपूर्वियों में भी छट्ठाण वड़िया होते हैं, आरोहअवरोह होते हैं ।
. मेरे विचार ऐसे हैं कि कोई भी लेख शास्त्र आधारित होना चाहिए । आधार के बिना कुछ भी लिखना नहीं चाहिये ।
मैंने प्रथम बार ही लेख लिखा । अमरेन्द्रविजय ने कहा, 'यह तो केवल पाठों का संग्रह हुआ । लेख तो मौलिक होना चाहिये ।'
मुझे यह पद्धति पसन्द नहीं है।
महान् टीकाकारों ने भी आगम-ग्रन्थों में अपनी ओर से कोई स्वतन्त्र अभिप्राय नहीं दिया तो हम कौन हैं ?
. भगवान की शर्त है कि - "यदि आपके हृदय में अन्य कोई है तो मैं वहां नहीं आऊंगा ।' भगवान को यदि बुलाना हो तो पुद्गल का प्रेम छोड़ना पड़ेगा । _या तो आप भगवान को पसन्द करें, या तो पुद्गल-आसक्ति ।
गइ काले पुस्तक 'कहे कलापूर्णसूरि' डॉकटर राकेश मारफत मळी गयुं छे. हुं ते मंगाववाना प्रयत्नमां हतो... अने आवी गयु. बहु आनंद थयो.
पूर्वे बीजानी मारफत अत्रे आवेल ए पुस्तक अत्रे मने मळेल. अने लगभग ते हुँ पूर्णपणे वांची गयो छु. भरपूर प्रसन्नता थइ छे. साधुसमाचारीनी वातो / अने पूज्यश्रीना मुखेथी वहेती वाणी खूब असरकारक बनी रहे छे. मने घणुं गम्युं छे. रुबरु मळ्या तुल्य आनंद थयो छे.
आ काळमां पूज्य पंन्यासजी महाराज बाद पूज्य आचार्य भगवंत खूब श्रद्धेय व्यक्ति छे. तमो गणिवरोए खूब श्रम करीने पुस्तक तैयार कर्यु छे. धन्यवाद छे.
- मुनि जयचन्द्रविजय
सुरत.
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*** कहे कलापूर्णसूरि - १)
कहे