________________
• धर्मात्मा के कुल में जन्म पाना, भगवान-गुरु आदि उत्तम निमित्त मिलना कोई साधारण बात नहीं है।
आत्मा निमित्त वासी है । मन्दिर में अलग ही भाव आते हैं, थियेटर में अलग । यह तो अनुभव सिद्ध ही है । अब तो थियेटर में जाने की भी आवश्यकता नहीं है । टेलिविजन लाकर आपने घर को ही थियेटर बना दिया है । यह अत्यन्त खतरनाक है । इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे ।
. बाईस वर्ष पूर्व रजनीशभाई कच्छ-मांडवी में आने वाले थे । कच्छ के महाराजा का मांडवी स्थित 'विजय पैलेस' आश्रम के रूप में परिवर्तित होने की तैयारी में था । मैंने लाकड़िया के बाबूभाई मेघजी को बात की, 'यह उचित नहीं हो रहा है।' फिर तो ऐसी स्थिति बन गई कि उनका आगमन रुक गया । वे अमेरिका चले गये । यह कच्छी आदमी की विजय थी ।
हम दक्षिण में पांच-छ वर्ष रहे । वहां की स्थानीय प्रजा मूलभूत रूप से हिंसक है । स्थान-स्थान पर बकरों की बलि दी जाती है, जबकि हेमचन्द्रसूरि एवं कुमारपाल के प्रभाव से गुजरात, राजस्थान, कच्छ में ऐसा देखने को नहीं मिलेगा । कच्छ में तो ऐसे मुसलमान बसते हैं जिन्होंने अपने जीवन में मांस कभी देखा नहीं, खाया नहीं । मांडवी में एक मुसलमान मालिश करने के लिए आया था । वह कहता था - 'मैं मांस नहीं खाता, सम्पूर्ण रामायण मुझे कण्ठस्थ है, रामायण पर प्रवचन भी करता हूं ।
यह यहां की भूमि का प्रभाव है। __जैनों में तप के संस्कार सहज हैं । छोटे लडके भी खेलखेल में अट्ठाई कर लेते हैं । यहां अमित नामक साढे बारह वर्ष का एक लड़का है । पर्युषण में उसने हंसते-खेलते अट्ठाई कर ली । मुझे तो बाद में ध्यान आया । ये हैं जैन कुल के संस्कार !
. मुनिचन्द्रविजय : भगवान जीरण सेठ के घर क्यों नहीं गये ? पूरण (अभिनव) सेठ के घर क्यों गये ?
पूज्यश्री : भगवान हैं । उनके जीवन के लिए हम क्या कह सकते हैं ? परन्तु यह प्रेरणा ले सकते हैं कि जहां परिचित एवं भक्त हों, वहां पर ही गोचरी के लिये जाना चाहिये, अन्यत्र
-१ ******************************२७१