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गुजरात के C.M. केशुभाई पटेल को वासक्षेप डालते हुए
की पूज्यश्री, वि.सं. २०५६, सुरेन्द्रनगर :
१९-९-१९९९, रविवार
भा. सु. ९
पूर्व तीर्थंकरों की भक्ति किये बिना तीर्थंकर भी तीर्थंकर बन नहीं सकते । बीस स्थानकों में मुख्य प्रथम पद तीर्थंकर है, शेष उनका परिवार है ।
परमात्मा के प्रति प्रेम का तीव्र प्रकर्ष होने पर भक्तियोग का जन्म होता है ।
- जीव के प्रति किया गया प्रेम जीव को शिव बनाता
गुणी जीवों के प्रति प्रमोद-बहुमान होना चाहिये । उनका सम्मान करने से उनके समस्त गुण हमारे भीतर आ जाते हैं । आज तक कोई भी जीव गुणी के बहुमान के बिना गुणी नहीं बन सका । व्यापारी के पास प्रशिक्षण लेने के बाद ही व्यापारी बना जा सकता है, उसी प्रकार से गुणी की सेवा के द्वारा ही गुणी बना जा सकता है ।
तीर्थंकर के जीवन में दो वस्तु दिखाई देगी : १. प्रभु के प्रति अगाध प्रेम ! २. प्रभु के साथ जुड़े जगत् के जीवों के प्रति प्रेम ! ये दोनों समस्त शास्त्रों का सार हैं ।
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कहे।