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गाथा के जितना लाभ देता है ।
- धर्म करने पर केवल हमें ही नहीं, सम्पूर्ण जगत् को लाभ प्राप्त होता है । किस प्रकार ? पक्खी सूत्र में धर्म के कैसे विशेषण प्रयुक्त किये हैं ?
हिए सुए खम्मे निस्सेसिए आणुगामियाए... । अर्थात् समस्त जीवों के लिए कल्याणकारी यह धर्म है ।
इसीलिए कहा जाता हैं कि 'एक साधु सम्पूर्ण जगत् की रक्षा करता है ।'
* गोचरी लाने के बाद भी उसमें से अन्य साधुओं की भक्ति करनी है। गृहस्थों में, श्रावकों में तो साधर्मिक भक्ति के लिए चढावे बोले जाते हैं । मद्रास (चेन्नई) में 'फले चून्दड़ी' का चढावा एकावन लाख में गया था । कोई नहीं ले तो भी आग्रह करने वाले को लाभ होता ही है । विधि एवं भक्ति बिना का निमन्त्रण पूरण सेठ की तरह निष्फल होता है, जबकि विधियुक्त का निमंत्रण जीरण सेठ की तरह सफल बनता है। भले उसे भगवान का लाभ नहीं मिला, परन्तु उसका निमन्त्रण सफल हो गया । पूरण सेठ को भले ही भगवान का लाभ मिला, परन्तु तो भी उसका दान निष्फल हुआ ।
लाट देश के लोग देने का दिखावा बहुत करते हैं, परन्तु देते कुछ भी नहीं । इसे 'लाटपंजिका' कहते हैं ।
आपने क्या डफोल शंख की कहानी सुनी है ? मांगो उससे दुगुना देने का कहे, परन्तु देता कुछ भी नहीं ।
हमें मांडवी में एक ऐसा डफोल शंख मिल गया । उपधान में तीन नीवी लिखवा गया और बोला, 'मैं भीलड़ियाजी आदि में ट्रस्टी हूं। कोई भी कार्य हो तो कहना । फिर 'आठसौ रूपयों की आवश्यकता है' कह कर रू. ८०० लेकर गया वह गया । पुनः लौटा ही नहीं ।
सूरत के हमारे चातुर्मास के बाद हसमुख नामक एक लड़का फोन पर बात करके सुरत के ट्रस्टिओं के पास रू. ६०,००० (साठ हजार) ले गया ।
फोन पर बोलता था : 'मैं मुमुक्षु हूं । आचार्य महाराज की पुस्तक छपवाने के लिए रू. २५-३० हजार की आवश्यकता है। २६८ ****************************** कहे
कहे कलापूर्णसूरि - 3