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नामस्तव (लोगस्स) की महिमा कितनी है, उसका पता उपधान से लगेगा । उसे प्राप्त करने के लिए आपको कितना तप आदि करना पड़ता है ? यह समझें । उसकी महिमा समझ में आयेगी । इसीलिए 'लोगस्स' एवं 'नमुत्थुणं' दोनों के उपधान अलग रखे हैं ।
महानिशीथ में कहा है - प्रभु का नाम इतना पवित्र है कि शील-सम्पन्न साधक यदि उसे जपें तो बोधि, समाधि एवं सिद्धि शीघ्र प्राप्त करता हैं ।
लोगस्स का काउस्सग्ग जीवन में आये अतः यह सब कहा है। __ हमारे संघ में १००८ लोगस्स का काउस्सग्ग करने वाले हैं । हिम्मतभाई ३४६ लोगस्स का काउस्सग नित्य करते हैं । उन्होंने एक बार तो सम्पूर्ण रात्रि काउस्सग्ग में निकाली थी ।
परम पूज्य आचार्य भगवंतना काळधर्म पाम्याना आघातजनक समाचार सांभल्या । मारा जेवा केटलाये साधकोए शीळी छत्रछाया गुमावी । नाव अधवच्चे रही अने काळे आवी कारमी पळ आपी। सहरानुं रण ओळंगवा जेवी दशा थई गई। मारा जीवन पर तेमनी जे कृपा वरसी छे, वात्सल्य मळ्युं छे तेनुं वर्णन लखवा शब्दो नथी । तेमना चरणनी रज मारा मस्तके पड़ी तेनुं मने गौरव छ । पाट पर बेसी केवा निःस्पृहभावे अने मा-बाळकने शीखवे तेम वाचना आपता ते दृश्य आंख सामे खडं थाय छे । आंख गद्गद् थई । हवे कोण बाकीनो मार्ग कपावशे? तमारी सौनी मनोदशा पण आवी ज छे । त्यां कोण कोने शुं कहे ?
पू.श्री माटे मारी अंतिमयात्राना दर्शन करवानी भावना हती, पण कांतिभाईए विगत जणावी एटले मननी भावना शमाववी पडी छतां ज्यां मारी भावना व्यक्त थाय तेवं कार्य सोंपशो अने मने ऋणमुक्त करशो । बाकी तो...
गुरुवर तेरे चरणों की, मुझे धूल मिल गई । चरणों की रज पा कर, तकदीर बदल गई ॥
- सुनंदाबहेननी वंदना १६-२-२००२, एलिसब्रीज, अमदावाद. ..१
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