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जिस प्रकार जल-पात्र में सूर्य दिखाई देता है, उस प्रकार भक्त को मूर्ति में भगवान दिखाई देते हैं। क्या जल- पात्र में दिखने वाला सूर्य सच्चा नहीं है ?
वि.संवत् २०३७ में मनफरा में बहिर्भूमि जाते समय तालाब में सूर्य के प्रतिबिम्ब के प्रकाश से भी गर्मी लगती, सिर दुःखता
था ।
बोलो, कौनसा सूर्य सच्चा ? ऊपर वाला सूर्य सच्चा कि तालाब में प्रतिबिम्बित सूर्य सच्चा ? कौनसे भगवान सच्चे ? ऊपर वाले भगवान सच्चे कि हृदय में आये हुए भगवान सच्चे ? दोनों सच्चे हैं ।
तालाब का जल मलिन होगा तो प्रतिबिम्ब नहीं दिखेगा । यदि हमारा चित्त भी कलुषित होगा तो भगवान नहीं आयेंगे | भगवान नहीं भागे, परन्तु हमने उन्हें भगा दिये । हमारी प्रसन्नता प्रभु की प्रसन्नता सूचित करती है, अर्थात् चित्त प्रसन्न होते ही भगवान का वहां प्रतिबिम्ब पड़ता है ।
बोधि- समाधि जीवन्मुक्ति है और पूर्ण आरोग्य विदेह-मुक्ति है । ये दोनों मुक्ति गणधरों ने लोगस्स में भगवान के पास मांगी है। ✿ दीक्षा अंगीकार किये ४५ वर्ष हो गये । उससे भी पूर्व बचपन से ही मैंने भगवान को पकड़े हैं। आगे बढ कर कहूं तो कितने ही भवों से भगवान पकड़े होगें, यह पता नहीं है । मुझे लगता है कि भवो भव भगवान साथ में है ।
साधना के लिए धैर्य चाहिये । शीघ्रता से आम नहीं पकते, हां बबूल पकते हैं । भगवान को पाने के लिए कई जन्म लग जाय तो भी परवाह नहीं ऐसा धैर्य चाहिए ।
✿ 'नाम ग्रहंतां आवी मिले, मन भीतर भगवान ।' मानविजयजी की इस पंक्ति के आधार पर ही पुस्तक का
नाम 'मिले मन भीतर भगवान' रखा है ।
मोहनीय का जितने अंशों में ह्रास हुआ हो, उतने अंशों में हम सहज स्वभाव में स्थिर बन सकते हैं । उस समय हम सिद्धों के साथ मिलन कर सकते हैं । तब भक्त को ऐसा लगता है 'मेरी प्रेमसरिता प्रभु के महासागर में मिल गई है ।'
कहे कलापूर्णसूरि- १ ****
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