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भगवान का नाम या 'नमो अरिहंताणं' हम सामान्य रूप में लेते हैं, परन्तु गहराई से देखो तो उसमें ही भगवान दिखाई देंगे ।
आप अपने नाम भूल जायें, भगवान के नाम को मत भूलना । वह श्लोक याद है न ?
___ 'मन्त्रमूर्ति समादाय...' दस हजार रूपयों का चैक मिल गया तो दस हजार रूपये मिल ही गये ऐसा हम मानते है । भगवान का नाम मिल गया तो भगवान ही मिल गये माना जायेगा ।
ब्रिटिश काल में कोलकाता के एक कोलेज में शिक्षक ने अपनी अंगूठी निकाल कर कहा. 'इसके भीतर होकर कौन निकल सकेगा ?'
एक विद्यार्थी ने कागज में अपना नाम लिखकर वह अंगूठी में से निकाल दिया । कागज में लिखा था - 'सुभाषचन्द्र बोस ।'
व्यक्ति और व्यक्ति का नाम भिन्न नहीं है । व्यवहार से भी यह समझ में आता है न ? आपके नाम से कितने ही काम नहीं चलते ?
बुद्धिजीवियों को यह समझ में नहीं आयेगा । इसके लिए हृदयजीवी-प्रभुजीवी बनना पड़ेगा ।
कोई द्रव्य अन्य द्रव्य में प्रवेश नहीं कर सकता, परस्पर अप्रवेशी है, परन्तु प्रभु का नाम हमारे हृदय में प्रवेश कर सकता है, अंगअंग में एकाकी भाव प्राप्त कर सकता है ।
'जयवीयराय' में क्या कहा है ? मुझ में कोई प्रभाव नहीं है कि मैं यह सब प्राप्त कर सकू परन्तु तेरे प्रभाव से 'भवनिव्वेओ आदि' प्राप्त होता है । 'होउ ममं तुह प्पभावओ भयवं ।'
पिता के सामर्थ्य पर विश्वास है, परन्तु परमात्मा के सामर्थ्य पर विश्वास नहीं है ।
पुत्र सुपुत्र बने तो पिता का धन प्राप्त कर सकता है, उस प्रकार हम आज्ञापालक बनें तो प्रभु की प्रभुता प्राप्त कर सकते
प्रतिमा आलम्बन के लिए है। धीरे-धीरे आदत पड़ने पर वैसे ही भगवान सामने दिखने लगेंगे ।
*** कहे कलापूर्णसूरि - १
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