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भगवान सर्वस्व देने के लिए तैयार हैं । हम कितना लेंगे ? मांगो तो आज ही सम्यक्त्व मिल जाये ।। ___ 'जिनभक्तिरत चित्त ने रे, वेधक रस गुण प्रेम रे ।
सेवक जिनपद पामशे रे, रससिद्ध अय जेम रे ।'
लोहे के समान आत्मा को प्रभु-गुण के प्रेम का वेधक रस स्पर्श करे तो आत्मा परमात्मरूपी स्वर्णत्व से चमक उठती है ।
वह वेधक रस प्राप्त हो या न हो, यह अपने हाथ में नहीं है, परन्तु प्रभु-गुणों का प्रेम. अपने हाथ की बात है ।
- 'मेरे भाग्य में कहां चारित्र है ?' यह कहने वाला यह कभी नहीं कहता कि 'मेरे भाग्य में कहां भोजन है ?'
आज का भाग्य कल का अपना पुरुषार्थ है । आज का पुरुषार्थ ही कल का भाग्य बनेगा ।
• कोई अष्टांग योग बताये, कोई अन्य ध्यान पद्धति बताये । भगवान ने सामायिक बताई जो समस्त ध्यान-पद्धतियों को टक्कर मारती है। सामायिक भगवानने केवल कही नहीं, उसे जीवन में उतारी है । सामायिक में समस्त अनुष्ठानों का संग्रह है । 'सर्वज्ञ कथित सामायिक धर्म' पुस्तक प्रकाशित हुई है वह देखें ।
हमारे पास आई हुई सामायिक ग्वाले के हाथ में आये हुए चिन्तामणि के समान है जो कौए उड़ाने के लिए फैंक देता
. नवकार, करेमि भंते के अतिरिक्त अन्य सूत्र अपनेअपने शासन में गणधरों के भिन्न-भिन्न होते हैं । शब्दों में अन्तर होता है, अर्थ में अन्तर नही होता, इसी लिए तीर्थंकर के द्वारा कथित में कोई अन्तर नहीं आता । अनन्त तीर्थंकरों ने जो कहा है, वही वे कहेंगे । इसीलिए सीमंधर स्वामी से सुना हुआ निगोद का वर्णन कालिकाचार्य के पास सुनने पर भी सौधर्मेन्द्र को ऐसा ही लगा ।
जिसका सिर फिर गया हो वही आगम में परिवर्तन करता है, कि परिवर्तन करने की इच्छा करता है ।
. जितनी दृष्टि खुलती है, उतनी श्रेष्ठता दिखती है । मुनिचन्द्रसूरिजी को कुष्ठ रोगी में उत्तम पुरुष (श्रीपाल) दिखाई
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