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का होना चाहिए ।
आत्मसाक्षात्कार अर्थात् परमात्मा का साक्षात्कार । जिस क्षण परमात्मा दिखेंगे, उसी क्षण आत्मा दिखेगी ।
परमात्मा ही कहेंगे - तू और मैं एक ही हैं । अतः परमात्मा या आत्मा का दर्शन एक ही है ।
दरिया से मौज, मौज से दरिया नहीं है जुदा । हम से नहीं जुदा है खुदा, और खुदा से हम ।
इन समस्त बातों का जीवन में अनुभव करके मैंने ये आपको बतार्यां हैं - ऐसा यशोविजयजी लिखते है - अनुभववेद्यः प्रकारोयम्
तत्रभवता प्रेषितं पुस्तकं 'कडं कलापूर्णसूरिए' इति समधिगतं । समवगतञ्च तत्रगतं तत्त्वं किञ्चित् । भवतः पुस्तकसम्पादन-पद्धतिरतीव रमणीयतरा ।।
पुस्तक-पठनावसरे संविदितानुभूति-रेतादशी यत् तत्रश्रीमतां श्रीमतां पूज्यप्रवराणां कलापूर्णसूरीश्वराणां सन्निकटस्थान एव उपविश्य यथा श्रूयते साक्षात् रूपेण वाचना / प्रवचनं वा एतादृग्वैलक्षण्यमनुभूय प्रमुदितं आस्माकीनं अन्तश्चेतः ।
एतत्सम्पादन-कार्य-कौशल्येन भवद्भ्यां प्रकृष्टपुण्यकर्म समुपार्जितम् ।
एतदर्थं धन्यवादाझै भवन्तौ ।
पुस्तक-प्रेषण-कार्येण भवद्भ्यामावाम् निश्चितरूपेणोपकृतौ । पुनः स्मरणीयौ आवामिति -
- जिनचन्द्रसागरसूरिः, - हेमचंद्रसागरसूरिश
पालीताणा.
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***** कहे कलापूर्णसूरि - १)
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