________________
लोकोत्तम मंगल चार हैं - अरिहंत, सिद्ध, साधु एवं धर्म ।। शक्कर का निर्माण दूध आदि को भी मधुर बनाने के लिए हुआ है । उस प्रकार अरिहंत भी अन्य को मंगलभूत बनाने वाले हैं । अरिहंत ही लोकोत्तम हैं, अप्रतिम हैं, शाश्वत मंगल हैं, शरण हैं । एक अरिहंत में अन्य तीनों मंगल समाविष्ट हैं । (सिद्ध + ऋषि + धर्म = सिद्धर्षिसिद्धर्ममयः)
. मेरा मोक्ष निश्चित होने वाला ही है। अब मैं अरिहंत को छोड़ने वाला नहीं हूं। यह मेरा दृढ निर्णय है । ऐसी दृढता से अरिहंत को पकड़ लो तो उद्धार होगा ही।
पुल पर चलने वाले को भयंकर नदी का भी भय नहीं है। अरिहंत को पकड़ कर चलने वाले को भयंकर संसार का भी भय नहीं है । पुल तो फिर भी टूट सकता है, हमें नदी में डुबा सकता है, परन्तु अरिहंत का शरण संसार में कभी डुबा दे, ऐसा न कभी हुआ है, न कभी होगा ।
कैसै हैं अरिहंत ?
'गुण सघला अंगीकर्या, दूर कर्या सवि दोष ।' हमने सब उल्टा किया है, समस्त दोष भीतर भर कर बैठे हैं ।
गुणों के सम्मान के कारण क्रोधित दोष जाते-जाते प्रभु को कह गये कि हमें रखने वाले अनेक हैं । हमें आपकी थोड़ी भी परवाह नहीं है । जैसे उदंड शिष्य जाते-जाते गुरु को कह जाता है कि मुझे रखने वाले अनेक है, आपकी थोड़ी भी जरुरत नहीं
वहां से रवाना हुए दोष हमारे भीतर प्रविष्ट हो गये ।
साक्षात् भाव-अरिहंत नहीं मिले तो भी आप चिन्ता न करें । नाम-स्थापना-द्रव्य के रूप में अरिहंत भी पुल बन कर हमारे समक्ष आकर खड़े हैं ।
__ क्या इस पुल पर श्रद्धा है ? जगत् में अन्य सब स्थानों पर श्रद्धा है । सिर्फ यहीं नहीं है क्या ? पुल पर जितनी श्रद्धा है उतनी भी श्रद्धा क्या अरिहंत पर नहीं है ?
. दीक्षा अंगीकार करने से पूर्व मुझे अनेक व्यक्ति कहते - 'गुजरात में साधु दांडों से लड़ते हैं । वहां जाकर क्या करोगे ?'
कडे
-१******************************२४९