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अभिग्रह धारण करने से सत्त्व की वृद्धि होती है, क्षुधा आदि परिषह सहन करने की शक्ति आती है और अहंकार, मोह, ममत्व आदि दोष मिटते हैं ।
भगवान आदिनाथ को ४०० दिनों तक भिक्षा प्राप्त नहीं हुई थी । किस कारण से ? हम होते तो कभी का संकेत कर देते । यह तो ठीक कच्छ-महाकच्छ आदि ४००० सह दीक्षितों ने भी दीक्षा ग्रहण करने से पूर्व भोजन की व्यवस्था के लिए पूछा नहीं । वे कितने समर्पित होंगे ?
जिस प्रकार स्वर्ण को अग्नि आदि की परीक्षा में से गुजरना पड़ता है, उस प्रकार संयमी को परिषहों की अग्नि में से गुजरना पड़ता है।
लोच आदि स्वेच्छा से सहन करने की आदत के कारण अनायास ही आने वाले परिषह आदि सरलतापूर्वक सहन कर सकते हैं । लोच के समय सहन करने वाले हम, इसके अलावा प्रसंग पर कोइ बाल खींचे तो क्या सहन करेंगे ?
बाल तो आज कोई नहीं खींचेगा, परन्तु आपको अपमानित करने वाले शब्द कहेंगे । तब आप क्या करेंगे ?
गाली तो नहीं देता है न ? ऐसा सोचना । गाली देने पर डण्डा तो नहीं लगाता न ? डण्डा मारे तो जान से तो नहीं मारता है न ? । जान से मारे तो धर्म को नष्ट तो नहीं करता न ? इस प्रकार यदि सोचेंगे तो कभी क्रोध नहीं आयेगा ।
आक्रोश, तर्जना, घातना, धर्मभ्रंश ने भावे रे, अग्रिम अग्रिम विरहथी, लाभ ते शुद्ध स्वभावे रे...
__ - उपा. यशोविजयजी सज्झाय-छट्ठा पाप-स्थानक
• पापक्षय, इर्यापथिकी, वंदना आदि आठ कारणों से कायोत्सर्ग होता है । 'पावक्खवणत्थ इरियाइ'... चैत्यवन्दन भाष्य ।
. सुखलाल पंडित ने कहा था कि प्रतिक्रमण के सूत्र अन्य आचार्यों के द्वारा रचित हैं । उन्हें प्रश्न पूछा गया - 'तो फिर गणधर भगवंत प्रतिक्रमण में कौनसे सूत्र बोलते थे ?'
फिर सुखलालजी ने स्वीकार किया कि सूत्र गणधरों के द्वारा ही रचित हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - १ *
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