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0 नागेश्वर तीर्थ में सर्व प्रथम दर्शन किये तब लगा कि मानो साक्षात् पार्श्वनाथ मिल गये । पूरी नौ हाथ की काया ! भोपावर में शान्तिनाथ की जयपुर में महावीर स्वामी आदि की कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्तियां हैं । ऐसी मूर्तियों के समक्ष कायोत्सर्ग का अभ्यास करने जैसा है।
अलौकिक तेजवाली मूर्तियों के दर्शन से सम्यक्त्व निर्मल होता है। जब मैं अहमदाबाद जाता हूं तब मूलिया, महावीर स्वामी, जगवल्लभ अवश्य जाता हूं । साक्षात् महावीरस्वामी याद आते है, परन्तु आप स्वयं शान्त हो तो ही अनुभूति होती है। क्या यहां (वांकी में) हमेश महावीरस्वामी के शान्त चित्त से दर्शन करते हैं ? संध्या के समय घी के दीपक के प्रकाश में कैसे सुन्दर सुशोभित लगते हैं ? आपको शंखेश्वर दादा की याद आ जायेगी ।
• भक्ति हमारी, परन्तु शक्ति भगवान की । भगवान की कृपा से अपनी शक्तियां व्यक्त होती रहती है । भगवान ही हमारी शक्तियों को बाहर लाने के मुख्य हेतु है । गौतमस्वामी इसका उत्तम उदाहरण है । उनका अभिमान विनय में बदल गया । उनकी समस्त विनाश-गामिनी शक्तियां विकास-गामिनी बन गई ।
अरिहंत की भक्ति से हमारी श्रद्धा, मेधा, धृति, धारणा, अनुप्रेक्षा आदि की वृद्धि होती रहती है ।
- अइमुत्ता ने अपने पिता को कहा, 'मुझे दीक्षा ग्रहण करने का इनकार मत करना । यदि आप मुझे मृत्यु से बचा सकते हो तो मैं दीक्षा ग्रहण नहीं करूं ।' माता-पिता चुप हो गये ।
सौ वर्ष के वृद्ध भी मृत्यु नहीं चाहते ।
उस वृद्धा ने भैंस देखकर उसे यम समझ कर कहा, 'मैं बीमार नहीं हूं । बीमार तो वह है।'
साधुत्व अर्थात् मृत्युंजयी मंत्र । साधु को कभी मृत्यु का भय नहीं होता। वे हमेश बोलते है - 'आहारमुवहिदेहं सव्वं तिविहेण वोसिरइ' वे हमेश आहार, उपधि तथा देह का त्याग करके ही सोते है ।
क्या मृत्युंजयी तप-जप चाहिये ? मृत्युंजयी तप है - मासक्षमण । मृत्युंजयी जप है - नवकार महामंत्र । नवकार मंत्र का नाम
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