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की सूचना से शंखेश्वर में लाया गया एवं अग्नि-संस्कार किया गया । उस वक्त गणि पूर्णचन्द्र वि., मुनिश्री अनंतयश वि. आदि पांच उंझा से शंखेश्वर आ चुके थे । पूज्यश्री का अग्नि-संस्कार हजारों लोगों की अश्रू पूर्ण आंखों के साथ माघ शु. ६ के दिन किया गया ।
डेढ करोड की बोली उत्साह पूर्वक बोल कर हितेश उगरचंद गढेचा (कच्छ-फतेगढवाले, अभी अमदावाद) ने अग्नि-दाह दिया था । हितेश की उदारता से सभी लोग तब अभिभूत हो गये जब उसने केशवणा संघ के लोगों को, धीरुभाई शाह (विधानसभा अध्यक्ष, गुजरात) कुमारपाल वी. शाह, अपने सामने १ करोड ४१ लाख तक बोली बोलनेवाले खेतशी मेघजी तथा धीरुभाई कुबड़ीआ आदि सभी को भी अग्नि-दाह के लिए बुलाए ।
कुल मिलाकर ३ करोड़ की आय हुई थी ।
अग्नि-दाह के समय हम लाकडीआ (कच्छ) में थे । अग्निसंस्कार की क्रिया खतम होने के बाद लाकडीआ निवासी चीमन कच्छी (पालीताना) हमारे पास आया और उसने समाचार दिये : केशवणा से शंखेश्वर तक जिस ट्रक में पूज्यश्री का देह रखा गया था, उस ट्रक में पूज्यश्री के पास ही मैं बैठा था । यह जिम्मेवारी मुझ पर डाली गई थी । मैंने रास्तों के गांवो में देखा : भिन्नमाल, जालोर, थराद, राधनपुर आदि गांवों में रात के १२ १ २ बजे के समय भी पूज्यश्री के देह के दर्शन करने के लिए हजारों की भीड़ लाईन लगाये हुए खड़ी थी । मैंने मेरे जीवन में ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा । पूज्यश्री के प्रति लोगों के हृदय में आदर, कल्पना से भी ज्यादा देखने मिला ।
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दो दिन बीत जाने पर भी पूज्यश्री का देह चाहे जैसे मुड़ सकता था । अंगुलियां मुड़ सकती थी । एक बार तो मैंने पूज्यश्री के हाथों से वासक्षेप भी लिया । आम आदमी का देह मृत्यु के बाद थोड़े ही समय में अक्कड़ हो जाता है, जब कि यहां पूज्यश्री का देह वैसा का वैसा ही था । यह बड़ा ही आश्चर्य था ।
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अग्निदाह देने के बाद तो मेरा आश्चर्य ओर भी बढ गया । अग्निदाह के दो घंटे के बाद भी पूज्यश्री का देह वैसा का वैसा ही था । चमकती हुई दो आंखों के साथ समाधिमग्न पूज्यश्री का देह बराबर अरिहंत की
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