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यह सब बेहोश अवस्था में हो रहा था, ऐसा नहीं है। अंत समय तक पूज्यश्री पूर्णरूप से सजग थे । इस का चिह्न यह था कि पासवाले मुनि जब भी पूज्यश्री के हाथ हटाते या इधर-उधर करते तब पूज्यश्री पुनः कायोत्सर्ग मुद्रा में हाथ को रख देते थे । की पूज्यश्री की इस अवस्था को देखकर पासवाले मुनि ने नवकार, उवसग्गहरं, संतिकरं एवं अजितशान्ति की १० गाथाएं सुनाई। धीरे धीरे सांस की गति मंद हो रही थी। हाथ में नाड़ी की धडकन उपर-उपर जा रही थी । मुनि सावध हो गये। उन्होंने फिर नवकार मंत्र सुनाना शुरु कर दिया । ५०६० नवकार सुनाये और पूज्यश्री ने अंतिम सांस ली। उस वक्त सुबह ७.२० का समय हो चुका था । पूर्व क्षितिज में से माघ शु. ४, शनिवार १६-२२००२ का सूर्योदय हो रहा था और इधर अध्यात्म का महासूर्य मृत्यु के अस्ताचल में डूब रहा था । उत्तर भाद्रपद नक्षत्र का तब चतुर्थ चरण था । पूर्व क्षितिज में कुंभ लग्न उदित था। तब ग्रहस्थिति इस प्रकार थी :
ल | सू | चं | मं | बु | गु | शु | श | रा | के | ११ | ११ | १२ | १२ | १० ३ | ११ | २ | ३ | ९
ना उस वक्त केशवणा में फलोदी चातुर्मास वाले सभी मुनि (पू.आ.श्री वि. कलाप्रभसूरिजी, पू.पं. कल्पतरु वि., पू.पं. कीतिचन्द्रवि., पू. कुमुदचन्द्र वि., पू. तत्त्ववर्धन वि., पू. कीतिदर्शन वि., पू. केवलदर्शन वि., पू. कल्पजित् वि.) तथा सांचोर चातुर्मास बिराजमान पू. अमितयश वि. एवं आगमयश वि. मौन एकादशी के दिन पूज्यश्री की सेवा में उपस्थित हो गये थे । रानी चातुर्मास बिराजमान पू. कीर्तिरत्न वि. एवं हेमचन्द्र वि. १८ दिन पूर्व आ चुके थे । सभी ने पूज्यश्री की सेवा का अनुपम लाभ लिया था ।
पूज्यश्री के अन्य शिष्य सभी उस वक्त गुजरात में थे । गणि श्री पूर्णचन्द्र वि., मुनिश्री अनन्तयश वि. आदि पांच उंझा में, गणि श्री तीर्थभद्र वि. आदि ३ राजपीपला में, गणि श्री विमलप्रभ वि. आदि २ नवसारी के पास, आनंदवर्धन वि. आदि २ आराधना-धाम (जामनगर में) थे । हम माय से आधोइ के विहार में थे ।
पूज्यश्री के देह को अनेक संघों एवं अनेक पू. आचार्य भगवंतों