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की क्रिया शीघ्रता से करवा कर पूज्यश्री को केशवणा मंदिर में दर्शनार्थ ले गये । पूज्यश्री चारों ओर देख रहे थे और इशारे से मानो पूछ रहे थे : इतना जल्दी क्यों ?
चालु चैत्यवंदन में पूज्यश्री ने इशारे से मात्रु की शंका है, ऐसा कहा, 'मात्रु' शब्द भी बोले। जल्दी चैत्यवंदन करा के पूज्यश्री को उपाश्रय में लाये गये । पूज्यश्री का यह अंतिम चैत्यवंदन था । उपाश्रय में पूज्यश्री चेर पर से स्वयं खड़े हो गये और पाट पर मात्रु किया । उसके बाद ओटमलजी कपूरचंदजी ने कामली बहेराई एवं वासक्षेप लिया । मृत्यु से एक घंटे पूर्व की यह घटना है । यह अंतिम कामली व अंतिम वासक्षेप था । फिर पाट पर बैठ कर पूज्यश्री कायोत्सर्ग ध्यान में बैठ गये। (मृत्यु से आधे घंटे पूर्व की यह बात है ।) याद रहे इस वक्त दिवार आदि का टेका नहीं लिया था । पूज्यश्री तो अपनी अंतिम अवस्था की तैयारी कर रहे थे, लेकिन पासवाले मुनि तो उपचार की फीकर में थे । एक मुनि (पू. कुमुदचन्द्रविजयजी) ने पूज्य श्री को उठाने की कोशीश की, लेकिन पूज्य श्री मेरुपर्वत के शिखर की तरह ध्यान में इतने निश्चल बैठ गये थे कि तनिक भी खिसके नहीं । केवली के शैलेशीकरण की थोड़ी झलक की यहां याद आ जाती है। वैसे भी पूज्यश्री ने दो दिन से शरीर से संपूर्ण रूप से ममता हटा दी थी। दो दिन में इन्जेक्शन आदि कितना भी लगाया गया, (माघ शु. ३ की शाम को एक बड़ा इन्जेक्शन लगाया गया था, जिसमें २० मिनिट लगी थी) लेकिन पूज्यश्री ने मुंह से उंह तक तो नहीं किया, लेकिन चेहरे पर भी दूसरा कोई भाव भी आने नहीं दिया । मानो देह से वे पर हो गये थे, शरीर रूप वस्त्र उतारने की पूरी तैयारी कर ली थी ।
वैसे तो पूज्यश्री का वजन सिर्फ ४० कि.ग्रा. ही था, फिर भी पूज्य श्री तनिक भी नहीं खिसके, इससे सब को बड़ा ही आश्चर्य हुआ । दूसरे मुनि श्री (अमितयश वि.) जब पूज्य श्री को खिसकाने के लिए आये तब जा कर कहीं पूज्यश्री खिसके । लेकिन पूज्यश्री तो अपनी समाधि में लीन थे । उन्हें इस शरीर के साथ अब कहां लेना-देना था ? पादपोपगमन अनशन के बारे में कहा जाता है, उस अनशन में रहे हुए साधक को कोई कहीं ले जाय, काट दे, जला दे या कुछ भी कर ले तो भी वे अपनी आत्मा में लीन होते है, पादप (वृक्ष) की तरह वे अडोल होते है । पूज्यश्री में भी ऐसी कुछ झलक दिख रही थी ।
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