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पू. कनकसूरीश्वरजी म.सा.
पू. कनकसूरिजी की ३६वीं स्वर्गतिथि
३०-८-१९९९, सोमवार
भा. व. ४
. शरीर मोक्ष का परम साधन है । इसके बिना धर्माराधना नहीं हो सकती । अतः इस देह को टिका रखने के लिए साधु को आहार ग्रहण करना है। 'अहो जिणेहिं असावज्जा...'
* हम यहां इस वागड़ समुदाय में कैसे आये? कमलविजयजी के पिताजी ने एक बार फलोदी में चातुर्मास स्थित पू. विजयलब्धिसूरिजी को पूछा था, 'वर्तमानकाल में श्रेष्ठ संयमी कौन है? तब लब्धिसूरिजी ने पू. आचार्य श्री कनकसूरिजी का नाम दिया था ।
तब कमलविजयजी गृहस्थ जीवन में थे । उन्होंने यह याद रखा था । मुझे दीक्षा तो ग्रहण करनी थी रामचन्द्रसूरिजी के पास, क्योंकि उनके जैन प्रवचन पढने से वैराग्य हुआ, परन्तु कमलविजयजी ने पू. कनकसूरिजी के पास दीक्षा ग्रहण करने निश्चय किया और फलोदी के कंचनविजयजी भी वहां थे ।
इस प्रकार भगवान ने ही मुझे यहां भेजा । मैं तो प्रथम से ही भगवान पर भरोसा रखने वाला था । वे जो करेंगे वह कहे कलापूर्णसूरि - १ ******
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