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के प्रभाव से जो गुण, शक्ति, आदि प्राप्त हुए हैं, उन्हें शासन के लिए काम में लो ।।
व्याख्यान, वाचना, पाठ, लेखन, अध्यापन आदि करो तब ऋणमुक्ति की भावना विकसित करें । आप ये नहीं माने कि 'मैं उपकार करता हूं।'
हरिभद्रसूरि प्रत्येक ग्रन्थ के अन्त में लिखते थे कि इस ग्रन्थ के द्वारा जगत् के जीव दोष-मुक्त बनें, ताकि में ऋण-मुक्त बन सकुँ ।
आजे अहीं सोसायटीना देरासरनी प्रतिष्ठाना माहोलमां ज पूज्यपाद अध्यात्मयोगी आचार्यदेवश्रीना आघातजनक समाचार सांभळी आंचको अनुभव्यो । चतुर्विध श्रीसंघ साथे देववंदन कर्या ।
बस ए पछी आखो दिवस पूज्यश्रीना ज विचारो मनमां घूमण्या करे छे ।
गत वर्षे अमारा तारक गुरुदेवश्रीना स्वर्गगमन पछी एम लाग्या करतुं के पूज्यपाद बापजी महाराजनी परंपराना संस्कारोना अवशेषो पूज्यपाद अध्यात्मयोगी आचार्य भगवंतश्रीना जीवनमां जीवंत जोवा मळे छे अने ए गणत्रीए ज पूज्यपादश्रीनी याद आवतां अंतरमां आश्वासन अनुभवातुं हतुं ।।
पूज्यपाद आचार्य भगवंतश्रीनी विशाळ भक्तगण अने मोटा महोत्सवो वच्चे पण अलिप्तता-अंतर्मुखता, स्वाध्याय प्रेम - सतत पोताना कर्तव्य प्रत्येनी सजागता बाह्यदृष्टिए आटली ऊंची भूमिका पर पहोंच्या होवा छतां अष्टप्रवचनमाताना पालन माटेनी अद्भुत काळजी वगेरे गुणो आजे नजर सामे तरवर्या करे छे ।
पूज्यपादश्री जिनशासनना सितारा हता । बाह्यभूमिकामां प्रचंड पुण्यना स्वामी अने छतां अंतरंग भूमिकामां महावैरागी हता।।
__ आजे पूज्यपादश्रीने गुमावीने आपश्रीए ज नहीं पण आपणे सहुए घj घणुं गुमायुं छे ।
हवे तो आपणा जीवनमां शेष बचेल पूज्यपादश्रीनी स्मृति आलंबन लईने आगळ वधवा माटे मथवानो प्रयत्न करखो रह्यो । __ - एज... पंन्यास नरत्नविजयनी वंदना
(पू. भद्रंकरसूरिजीना)
म.सु. ४, लींबड़ी. A
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** कहे कलापूर्णसूरि - १)
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