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एकाग्रतापूर्वक काउस्सग्ग करें तो सफल होते हैं, अन्यथा प्रतिज्ञा-भंग होता है ।
आप एक ही लोगस्स का भले काउस्सग्ग करें, परन्तु ऐसी एकाग्रतापूर्वक करें कि सफल बने ।
- चाबी से जिस प्रकार ताले खुलते हैं, उस प्रकार आवश्यक सूत्रों से अनन्त भण्डार खुलते हैं ।
आगमों की चाबी 'नंदी, अनुयोग और विशेषावश्यक भाष्य' इन तीनों में है।
* तपागच्छ के उत्तमविजयजी ने खरतरगच्छीय देवचन्द्रजी के पास विशेषावश्यक भाष्य का अध्ययन किया था ।।
फिर देवचन्द्रजी ने अचलगच्छीय ज्ञानसागरजी के पास विशेषावश्यक का अध्ययन किया था । देवचन्द्रजी ने कहीं भी दादा के स्तवन, गीत आदि बनाये हों ऐसी जानकारी नहीं है । उन्हों ने 'ज्ञानसार' पर 'ज्ञानमंजरी' टीका लिखी है । उन्होंने यशोविजयजी को भगवान के रूप में सम्बोधित किये है।
ऐसे ग्रन्थ हमारे लिए वास्तव में भगवान बन कर आते हैं । जिनागम भी जिनस्वरूप हैं । वर्तमान युग में जिनागम बोलते हुए भगवान हैं। मूर्ति तो बोलती नहीं है, आगम बोलते हैं ।
- प्रतिमा अनक्षर बोध देती है, केवल संकेत से समझाती है । आगम अक्षर बोध देते हैं । क्या प्रतिमा के संकेत हम समझ सकेंगे ? उनकी मुद्रा कहती है - मेरी तरह पद्मासन लगा कर स्व में एकाग्र बनो, उपयोगवंत बनो । जब क्रिया में उपयोग मिलेगा तब तुरन्त ही अमृत का रसास्वाद मिलेगा।
जितने गुण भगवान के हैं, वे समस्त हमें प्रदान करने के लिए हैं।
'न विकाराय विश्वस्योपकारायैव निर्मिताः । स्फुरत्कारुण्यपीपूष - वृष्टयस्तत्त्वदृष्टयः ॥
- ज्ञानसार पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
परोपकाराय सतां विभूतयः ॥ आपको जो प्राप्त हुआ है वह दूसरों को दो । इस शासन
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