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में भी इन्हें साथ ले जाना है ।
संस्कृत भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था । कठिनतम ग्रन्थों को भी सरलता से पढ सकते थे, पढा सकते थे और शुद्धीकरण (संशोधन) करके नोट बनाते । इस प्रकार की १७ नोट सांतलपुर के भण्डार में हैं।
० ग्रन्थ सिर्फ पढने का कोई अर्थ नहीं है। उसका बारबार पठन करके उन्हें भावित बनाने से ही वे फलदायी बनते हैं ।
क्या हम पुराने ग्रन्थों को कभी सम्हालते हैं ? एक ग्रन्थ को क्या हम दूसरी-तीसरी बार पढते हैं ?
कोई व्यापारी कभी अर्जित धनराशि को खो नहीं देता । हम पढा हुआ भूल जाते हैं । सम्पत्ति को सम्हालते नहीं हैं ।
ज्ञान ही हमारी सम्पत्ति है। यही भवान्तर में हमारे साथ चलेगी । पुस्तकें, बोक्ष, भक्त, शिष्य आदि कोई साथ नहीं चलेगा ।
__ कम से कम इतना करें । नवकार से लगा कर आवश्यक सूत्रों को पूर्ण रूपेण भावित करें। अन्यथा हमारी क्रिया उपयोगशून्य बन जायेगी। उपयोग शून्य क्रिया का कोई मूल्य नहीं रहेगा।
मैं आवश्यक सूत्र सीख रहा था, तब मुझे भी रस नहीं आता था, परन्तु अर्थ आदि जानने के बाद अत्यन्त रस आने लगा । आप प्रबोध टीका, ललित विस्तरा पढें । आपको आवश्यक सूत्रों के रहस्य समझ में आयेंगे । - महान तपस्वी पू. भुवनभानुसूरि महाराजा ने उस पर विवेचन लिखा है । विवेचन का नाम है 'परम तेज' । उसे भी आप पढ़ सकते हैं ।
. अजैन लोगों का 'गायत्री मंत्र' ज्ञान का मंत्र है। नवकार 'अध्यात्म मंत्र' है । 'नवकार मंत्र' गणधर भगवंतों का हमें प्राप्त उत्कृष्ट दान है । इसकी संभाल रखेंगे तो हम पुरस्कार के पात्र ठहरेंगे और यदि उसको नष्ट किया तो दण्ड के पात्र बनेंगे ।
. मोक्ष की साधना के संक्षिप्त उपाय छ: आवश्यकों के अलावा अन्यत्र कहीं नहीं है । पैंतालीस आगमों का सार आवश्यकों में है । पैंतालीस आगम इन का विस्तार मात्र है ।
- ध्यान अर्थात् एकाग्रता की संवित्ति । ___ध्यान अर्थात् स्थिर अध्यवसाय ।।
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