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ठीक ही करेंगे । ऐसा दृढ विश्वास था ।
मद्रास का अनुभव :
बहुतों ने कहा - 'वे धूत हैं । जाने जैसा नहीं है, परन्तु भगवान के संकेत से, भगवान के भरोसे हम मद्रास गये । वहां भी मुहूर्त सम्बन्धी विघ्न आये परन्तु टल गये और प्रतिष्ठा धूमधाम से हुई । मैं इसमें भी भगवान की कृपा मानता हूं ।
__ हमारा प्रथम चातुर्मास (वर्षावास) तो फलोदी में ही हुआ । दूसरा चातुर्मास यों तो पू. कनकसूरि के साथ राधनपुर निश्चित हुआ, परन्तु पू. बापजी महाराज की इच्छा जान कर अहमदाबाद की ओर प्रयाण हुआ । प्रथम गोचनाद मुकाम पर ही गेस की तकलीफ होने पर पू. बापजी महाराज की ओर से इनकार आने पर सांतलपुर चातुर्मास निश्चित हुआ । राधनपुर में भद्रसूरिजी का चातुर्मास निश्चित हो चुका था । अध्ययन के लिए हमारा (कलाप्रभविजयजी, रत्नाकरविजयजी, देवविजयजी, तरुणविजयजी के साथ, दोनों बालमुनिओं को सम्हालना मुश्किल हो जाय । अतः एक कल्पतरुविजयजी को सांतलपुर रखे) चातुर्मास राधनपुर हुआ । वहीं हरगोवनदास पंडितजी के कहने से पाठशाला में व्याख्यान शुरू हुए । (कलाप्रभविजय के भी व्याख्यान वहीं पर शुरू हुए)
पर्युषण में भी तीन दिन व्याख्यान दिये ।
उसके बाद मांडवी में वि.संवत् २०१३ में और आधोई में वि.संवत् २०१६ में ये दो ही चातुर्मास पू. आचार्यश्री विजयकनकसूरिजी की निश्रा में मिले, परन्तु अन्तर के आशीर्वाद पूर्णतः प्राप्त हुए ।
भगवान ही सब भला करेगे, इस बात पर पूर्ण भरोसा था । • भोजन में तृप्त करने की शक्ति है कि हममें ? जल में प्यास बुझाने की शक्ति है कि हममें ?
यदि हम में ही शक्ति हो तो छिलके खाकर, पेट्रोल पीकर भूख प्यास शान्त करो । क्या ऐसा हो सकेगा ?
आप में ही मुक्ति पाने की शक्ति हो तो भगवान के बिना ही साधना में आगे बढो । क्या ऐसा हो सकेगा ?
तृप्ति में जिस प्रकार भोजन पुष्ट कारण है, उस प्रकार मुक्ति में भगवान पुष्ट कारण है। बिल्ली या बंदरी के बच्चे बन कर जाओ भगवान के पास । भगवान सब सम्हाल लेंगे ।।
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** कहे कलापूर्णसूरि - १