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('सव्वोवाहि विसुद्धं एवं... ') गुरु भक्ति में वांदणा, गुरु वन्दन भाष्य, नव स्मरण आदि हम जैनों के भक्तिशास्त्र हैं ।
'भत्तीइ जिणवरिंदाणं... सिज्झति पुव्वसंचिआ कम्मा ।'
सुयगडंग में वीर स्तुति अध्ययन ( तेरापंथी में मांगलिक के रूप में प्रयुक्त होता है ।) से मरणान्तक कष्ट दूर होते हैं ।
जम्बूस्वामी ने पूछा 'मैंने महावीर स्वामी को नहीं देखे | आपने यदि देखे हैं तो आप उनका वर्णन करें । इसके उत्तर में सुधर्मास्वामी ने भगवान महावीर का आबेहूब वर्णन किया है जो सुयगडंग वीर - स्तुति अध्ययन के रूप में समाविष्ट हैं ।
आपके पास बुद्धि है, लिखने की शक्ति है । इन सबका संकलन करके भक्तिशास्त्र के विषय में लिखा जा सकता है । भक्ति के मूल स्रोत गणधर भगवन्त हैं ।
नाम आदि चार प्रकार से भक्तिदर्शक सूत्रों की झलक : नाम : लोगस्स (नामस्तव, लोगस्स कल्प आदि साहित्य, 'साहित्य विकास मण्डल' आदि द्वारा प्रकाशित 1)
स्थापना : अरिहंत चेइआणं सूत्र । द्रव्य : जे अ अईआ सिद्धा ।
भाव : नमुत्थुणं सूत्र ।
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सूर्याभ देव ने भक्ति के लिए भगवान की स्वीकृति मांगी । नृत्य, नाट्य आदि प्रारम्भ किया । साधु-साध्वीजी बैठे रहे । प्रभु-भक्ति हो रही हो तब बैठने से स्वाध्याय जितना ही लाभ होता है ।
✿ भगवान में गुणों का तथा पुन्य का प्रकर्ष है । सामान्य केवली में पुन्य का इतना प्रकर्ष नहीं होता । भगवान के गुण और पुन्य दूसरों के काम लगेंगे ही । आत्म-कल्याण से तत्त्व मिलता हैं । परोपकार से तीर्थ चलता है ।
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*** कहे कलापूर्णसूरि - १