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प्रभु-वाणी सुनाते हुए पूज्यश्री, बेंगलोर के पास, वि.सं. २०५१ ।
२४-८-१९९९, मंगलवार
श्रा. सु. १३
डूबते को जहाज, अन्धकार में भटकने वाले को दीपक, मारवाड़ में मध्यान्ह में वृक्ष, हिमालय की शीत में अग्नि प्राप्त हो, उस प्रकार हमें इस असार संसार में तीर्थ प्राप्त हुआ है ।
सम्यग्दर्शन राजमार्ग हैं । मार्गानुसारिता वहां पहुंचने की पगडंडी है । जब मार्ग भूल जायें तब हमें स्वतः ही सही रास्ता नहीं मिलता । किसी भोमिये की आवश्यकता होती है। जिन मनुष्यों की पैदल चलने की आदत है, जो कभी मार्ग भूले हैं, उन्हें यह बात समझ में आयेगी । भगवान भी इस भव-अटवी में हम भूले हुओं के लिए भोमिये हैं । इस संसार में अनेक मत भेद हैं । इनमें हम हमारे योग्य मत को पकड़ लेते हैं । हम भगवान द्वारा प्रदर्शित मार्ग नहीं पकड़ते, हमें जो ठीक लगता है वह मार्ग हम पकड़ लेते हैं और उसे सच्चा मान लेते हैं । ऐसी मनःस्थिति को बदलने वाले भगवान हैं ।
- जब भी मोक्ष प्राप्त होगा तब कर्म-बन्धन के हेतुओं से नहीं, कर्म-निर्जरा के हेतुओं से प्राप्त होगा ।
मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग संसार मार्ग हैं । कहे क
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