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स्वागत की तैयारी, बेंगलोर के पास, वि.सं. २०५१ ,
२२-८-१९९९, रविवार
श्रा. सु. ११
- स्वयंभूरमण जैसा समुद्र भी छोटा पड़े, इतनी करुणा भगवान के हृदय में भरी हुई है । उस भव में ही नहीं, सम्यक्त्व से पूर्व के भवों में भी परोपकार बुद्धि सहज होती है । शास्त्रकारों ने उनके सम्यक्त्व को वरबोधि तथा समाधि को वर समाधि के रूप में बताया है। अन्य जीव अपने मोक्ष की साधना करते हैं, जबकि भगवान स्व-मोक्ष के साथ अन्य व्यक्तियों के मोक्ष को भी साधते हैं । स्वयं ही नहीं, अन्य व्यक्तियों को भी जिताये वही नेता बन सकता है। भगवान उच्च नेता हैं - 'जिणाणं जावयाणं' हैं ।
उत्तमोत्तम, उत्तम, मध्यम, विमध्यम, अधम एवं अधमाधम - इन छ: प्रकारों में उत्तमोत्तम के रूप में केवल तीर्थंकर भगवान को गिने हैं।
यहां चुनाव नहीं हैं। वे स्वयं अपने गुणों से बिना प्रतिद्वंद्वी के चुन कर आते हैं । हम धर्मकारी है परन्तु धर्मदाता नहीं हैं । भगवान धर्मदाता हैं, बोधि-दाता हैं ।
इसी लिए भगवान को धर्म ने अपना नायक बनाया है । दीक्षा के समय 'करेमि भंते' के द्वारा सामायिक के पाठ का
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