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निर्वेद : नरक से ही नहीं, स्वर्ग के सुखों से भी विरक्त होगा, निर्धनता से ही नहीं, धनाढ्यता से भी विरक्त
होगा । ४. अनुकम्पा : दुःखी जीवों के प्रति करुणार्द्र हृदय होगा ।
छ: जीव निकायों के वध में अपना स्वयं का वध
होता देखेगा । ५. आस्तिक्य : देव-गुरु के वचनों पर पूर्ण विश्वास होगा ।
अतः वह पूर्णतः समर्पित होगा । ऐसा जन्म बार-बार नहीं मिलेगा । कृपया आत्म-साधना का कार्य बाद में करने के लिए न रखें । ऐसी सामग्री पुनः कहां मिलेगी ? नैया किनारे लगने की तैयारी है और क्या हम प्रमाद करेंगे ? यह मैं अपने हृदय की बात करता हूं ।
. साम सामायिक (सम्यक्त्व सामायिक) के लक्षण ।
यहां शक्कर, द्राक्ष से अनन्त गुने मधुर परिणाम होते हैं । विशुद्ध लेश्या के प्रभाव से शक्कर के बिना ही मधुरता आ जाती है । तीन लेश्या टलती हैं और तेजोलेश्या शुरू होती है, तब से आनन्द की, प्रसन्नता की वृद्धि होगी ही ।
जीव-मैत्री एवं जिन-भक्ति ये दोनों साम-सामायिक की प्राप्ति के उपाय हैं । मैत्री एवं जिन-भक्ति इन दोनों की वृद्धि होगी तो जीवन में मधुरता की अनुभूति प्रत्यक्ष देखने मिलेगी। अनुभव करके देखें । यदि कटुता हो तो समझें कि अभी तक हृदय में कषाय विद्यमान हैं।
जिन-भक्ति जीव-मैत्री आदि के संस्कारों को पटुता, अभ्यास एवं आदर से इतने सुदृढ करने चाहिये कि भवान्तर में वे साथ आयें ।
कहे
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