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मुकाम में पधारते हुए पूज्यश्री, बेंगलोर के पास, वि.सं.
२१-८-१९९९, शनिवार
श्रा. सु. १०
अल्प संसारी को भगवान की वाणी (आज्ञा) प्रिय लगती है, तदनुसार जीवन यापन करना प्रिय लगता है । यही मोक्ष का सच्चा उपाय है । आज्ञा का उल्लंघन ही भव-परिभ्रमण का कारण है। कर्म-बंध का मुख्य कारण प्रभु की आज्ञा की विराधना ही है ।
. प्रमाद नहीं अप्रमाद, शुभ योग, सम्यक्त्व आदि आ जायें तो हमारे प्रयाण की दिशा बदल जाये, मोक्ष की दिशा आ जाये और पहले का विपरीत पुरुषार्थ अनुकूल पुरुषार्थ हो जाये ।
कर्म बांधने में, भोगने में पुरुषार्थ होता ही है, परन्तु अब वह कैसा करना चाहिये, यह निश्चित करना है । मैं कहता हूं कि पुरुषार्थ करना ही है तो विपरीत पुरुषार्थ क्यों किया जाये ? अविपरीत पुरुषार्थ ही क्यों न किया जाये ?
. यह करें, यह न करें आदि बारीक-बारीक बातों का उपदेश इस लिए दिया गया है कि हम वक्र और जड़ हैं । नट का निषेध किया हो, तो नटी का नाटक देखने वाले और प्रेरक गुरु को डांटने वाले हम हैं। जितनी वक्रता तथा जड़ता अधिक होगी उतना ही विधि-निषेध का उपदेश अधिक होगा । मनुष्य कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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