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पर ? शत्रु होते हुए भी प्रमाद को बहुत थपथपाया । मित्र होने पर भी धर्म-पुरुषार्थ की कायम उपेक्षा ही की है। चौबीस घण्टों में प्रमाद कितना ? पुरुषार्थ कितना? पुरुषार्थ हो तो भी किस सम्बन्ध में होगा ? विपरीत दिशा का पुरुषार्थ तो बहुत किया । पल-पल में सात कर्म तो हम बांधते ही हैं । वे कर्म शुभ बांधना हैं कि अशुभ ?
अभी ही भगवती सूत्र में उल्लेख देखा : 'प्रमाद कहां से आया ? योग (मन-वचन-काया) से ।
योग कहां से ? शरीर से । शरीर कहां से ? जीव से आया ।' यह जीव ही सब का मूलाधार है । इसकी शक्ति को जागृत करो । यह सोता हुआ सिंह है । जागने के बाद कोई इसके सामने टिक नहीं सकता ।
१५८ प्रकृतियां भले चाहे जितनी सशक्त प्रतीत होती हो, परन्तु वे तब तक ही सशक्त हैं, जब तक आत्मसिंह सोया हुआ है । सिंह गर्जना करे, छलांग लगाये, फिर बकरियां कहां तक ठहरेंगी ?
. नेपोलियन ने एक बार सेना को आदेश दिया, 'शत्रु का भय है, सेना की छावनियों में कोई प्रकाश नहीं करे ।' फिर वह देखने के लिए निकला - देखा तो 'सब से बड़ा जनरल ही प्रकाश जला कर अपनी प्रिया को पत्र लिख रहा था ।'
नेपोलियन बोला, 'आपको मालुम नहीं है, आज क्या आदेश है ? आदेश का उल्लंघन करके प्रिया को पत्र लिखा न? अब पत्र में नीचे लिखो - 'मैंने अपने नेता की आज्ञा का उल्लंघन किया है, अतः मेरा नेता मुझे अभी ही गोली से उड़ा देगा।' यह अन्तिम पंक्ति होगी ।'
और सचमुच ही नेपोलियन ने उस सेना के जनरल को गोली से भून दिया ।
एक सामान्य सम्राट की आज्ञा के अनादर का ऐसा परिणाम होता है तो तीर्थंकर की आज्ञा का अनादर करने का क्या फल होगा ? थोड़ी कल्पना करें ।
आज्ञा में अवरोध रूप प्रायः अपना प्रमाद ही होता है, यह न भूलें । हमारा जीवन प्रमादमय है ।
प्रमाद पांच प्रकार का तो अनेक बार सुना है । कभी आठ प्रकार बताऊंगा ।
कहे कलापूर्णसूरि - 8
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