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हम भी मानते हैं - जिनो दाता जिनो भोक्ता, जिनः सर्वमिदं जगत् । जिनो जयति सर्वत्र, यो जिनः सोहमेव च ॥
- शक्रस्तव आवश्यक नियुक्ति में... प्रश्न : केवलज्ञान का प्रमाण कितना ?
उत्तर : गुण-गुणी का अभेद । इस दृष्टि से जघन्य से दो हाथ (कूर्मापुत्र) और उत्कृष्ट से चौदह राजलोक (समुद्घात के समय) । सामान्य देहधारी का उत्कृष्ट से ५०० धनुष ।
यह पदार्थ केवलज्ञान का ध्यान करते समय अत्यन्त ही सहायक बन सकता है।
वि. संवत् २०२८ में लाकड़िया चातुर्मास में मैं एक कमरे में बैठा लिख रहा था । अचानक प्रकाश फैला । देखा तो खुली हुई छोटी खिड़की में से बादल हटने से सूर्य की किरणें आई थी । क्षयोपशम की खिड़की खुले तो ज्ञान का उजाला फैले ।
समुद्घात के चौथे समय में केवली सर्वलोकव्यापी बने तब उनके आत्म-प्रदेश हमें स्पर्श करते हैं । प्रभु मानो सामने से मिलने आते है । प्रत्येक छ: माह के बाद इस प्रकार प्रभु हमें मिलने आते ही है । हम प्रभु को कब मिलते हैं ?
सकल जीवराशि के प्रेम से जो केवली बने वे अन्त में इस प्रकार मिलने आयेंगे ही न ? अब तो मोक्ष में जाना है, फिर कब मिलेंगे ? केवली चाहे कर्म-क्षय करने के लिए करते हों, परन्तु उसमें अपना भी तो कल्याण है न ? प्रधानमन्त्री चाहे किसी भी कारण से आपके गांव में आये, परन्तु आपके गांव के मार्ग आदि तो व्यवस्थित हो जायेंगे न ?
(कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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