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है, यह ध्यान रहे ।
मंत्र एवं मूर्ति के रूप में साक्षात् भगवान हमारे समक्ष हों, फिर माला गिनते समय नींद आयेगी? निमन्त्रण देकर आपने भगवान को बुलाये हैं, फिर आप नींद करो तो क्या भगवान का अपमान नहीं कहा जायेगा ?
मैं वाचना दूं और आप नींद करें तो क्या कहा जाये ?
प्रभु-नाम या प्रभु-आगम के प्रति प्रेम हो तो क्या नींद आयेगी ?
पानी मंगवाने पर शिष्य पानी ही लाता है, केरोसीन नहीं लाता । यह नाम का ही प्रभाव है । तो प्रभु बोलने पर प्रभु ही आते है, अन्य कौन आयेगा ? अपने नाम के साथ प्रभु जुड़े हुए हैं ।
नाम के साथ आकृति (मूर्ति) भी प्रभु के साथ जुड़ी हुई
चार प्रकार के भगवान हैं - नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव । नामजिणा जिणनामा, ठवणजिणा पुण जिणिंद पडिमाओ । दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था ॥
-चैत्यवन्दन भाष्य इन चारों रूपों में भगवान समस्त क्षेत्रों में और सर्व कालों में व्यापक है । यहां भी है, वहां भी है । अत्र-तत्र-सर्वत्र है । केवल उन्हें देखने के लिए श्रद्धा के नेत्र चाहिये ।।
श्रद्धा के नेत्रों के बिना मूर्ति में तो क्या, साक्षात् भाव भगवान में भी भगवान दृष्टिगोचर नहीं होंगे।
• हम मद्रास (चैन्नई) गये तब (वि. संवत् २०४९) पानी प्राप्त करने के लिए पंक्तियां देखी । पानी की वहां अत्यन्त तंगी थी । साहूकार पैठ में सत्रह लाख का नित्य पानी का व्यापार होता था । तब पानी का मूल्य समझ में आता है ।
पानी तीन कार्य करता है १. दाह का शमन करता है, २. मलिनता दूर करता है, ३. प्यास बुझाता है। उस प्रकार भगवान का नाम भी तीन कार्य करता है । १.कषाय का दाह, २. कर्म की मलिनता और ३. तृष्णा की प्यास दूर करता है । पानी का एक नाम है - 'जीवन' । पानी के बिना क्या
कहे कलापूर्णसूरि - १)
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