________________
हमारा कार्य चलता है ? जब पानी के बिना नहीं चलता, तो भगवान के बिना कैसे चलेगा ?
चार निक्षेपा में भव्य जीवों के लिए अत्यन्त ही उपकारक दो हैं : नाम एवं स्थापना । भाव जिन की नहीं, आप नाम एवं स्थापना की ही उपासना कर सकते हैं। एक युग में चौबीस ही भाव भगवान हैं । शेष काल में नाम एवं स्थापना ही उपकार करते हैं ।
जो लोग भाव को ही आगे करके नाम-स्थापना को गौण गिनते हैं, वे अभी तक वस्तु-तत्त्व समझे ही नहीं हैं ।
भाव भगवान सामने होते हुए भी जमालि, गोशाला आदि तर नहीं सके, क्योंकि हृदय में भाव उत्पन्न नहीं किया । भाव वन्दक को पैदा करना है । उसके बिना साक्षात् भगवान भी तार नहीं सकते । भाव प्रकट हो जाय तो नाम या स्थापना भी तार सकते हैं ।
प्रभु के साथ एकता किये बिना समकित भी प्राप्त नहीं होता तो चारित्र तो प्राप्त हो ही कैसे सकता है ?
पंचवस्तुक : प्रतिवादी को उत्तर देते हुए हरिभद्रसूरिजी ने कहा है - साधु को घर-बार की आवश्यकता नहीं है । निश्चय से उसका निवास आत्मा में है । अतः ऐसी समता उत्पन्न हुई होती है कि कोई भी आवास के द्वारा चलाया जा सकता है। कई बार हम बस स्टेशन पर भी रहे हुए हैं ।
अध्यात्मयोगी महान विभूति जिनभक्तिमां तन्मयता प्राप्त करनार आचार्य भगवंत श्री वि. कलापूर्णसूरि म.सा.ना कालधर्मना समाचार जाणीने घणुं ज दुःख थयुं छे । आचार्य भगवंतमां अनेक गुणो हता । तेमांय अध्यात्मयोग अने जिनभक्ति मोखरे हता। आवा महान पुरुषना काळधर्मना अकस्मात समाचार मळतां दुःख थाय ते स्वाभाविक छे । चतुर्विध संघनी साथे देववंदन कर्या । - एज... आचार्य स्थूलभद्रसूरिनी अनुवंदना
म.सु. ६, चित्रदुर्ग.
१******************************१६९