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के आगमों में भी भगवान के दर्शन हों तो काम बन जाये ।
'मन्त्रमूर्ति समादाय देवदेवः स्वयं जिनः । सर्वज्ञः सर्वगः शान्तः सोयं साक्षाद् व्यवस्थितः ॥' पद्यानुवाद :
'प्रभु-मूर्तिमा छे शं पड्युं ? छे मात्र ए तो पत्थरो । प्रभु-नाममां छे शुं पड्युं ? छे मात्र ए तो अक्षरो ॥'
एवं कहो ना सज्जनो, साक्षात् आ भगवान छ । निज मंत्र-मूर्ति- रूप लई, पोते ज अहीं आसीन छ ।'
(हरिगीत) शिष्यों द्वारा नींद में खलेल डालने के कारण एक आचार्य ने आगमों की वाचना देना ही बंद कर दिया । इतने महान् आचार्य को भी मोह प्रभु तथा प्रभु के नाम को भूला दे तो हम किस विसात में हैं ? यहां दर्शन मोहनीय का आक्रमण हुआ ।
मोहनीय कर्म आपको अपनी जाति बताने नहीं देता, तो भगवान को कैसे जानने देगा ?
नाम युक्त ही स्थापना, द्रव्य एवं भाव होता है । नाम विहीन शेष तीन निक्षेप नहीं हो सकते ।
मूर्ति सामने है, परन्तु किसकी है ? महावीर स्वामी की मूर्ति
"महावीर स्वामी' यह नाम उनकी मूर्ति के साथ जुड़ा हुआ होगा ही।
आप किसी शहर में जायें और वहां किसी को मिलना हो, परन्तु उसका नाम आप भूल गये हैं तो आप उस व्यक्ति को कैसे मिल सकोगे ? किस प्रकार पूछ सकोगे ? नाम व्यक्ति की पहचान करने में सहायक है ।
सामान्य व्यक्ति का नाम भी इतना मूल्यवान होता है तो भगवान के नाम के मूल्य की तो बात ही क्या करें ?
भगवान के दर्शन, सिर्फ दर्शन के खातिर ही नहीं करने हैं, भगवान बनने के लिए करने हैं । भगवान कब बना जा सकता है ? भगवान कैसे हैं ? __ वीतराग भगवान राग-द्वेष रहित हैं। हमें भी वैसा ही बनना
कहे व
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